Friday 6 November 2015

बापू

उठ न बापू! जमुना तट पर,
क्या करता रखवाली ?
तरणि तनुजा काल कालिंदी,
बन गयी काली नाली।
राजघाट पर राज शयन!
ये अदा न बिलकुल भाती।
तेरे मज़ार से राज पाठ,
की मीठी बदबू आती।
वाम दाम के चकर चाल,
में देश है जाके भटका।
ब्रह्मपिशाच की रण भेरि
शैतान गले में अटका।
'हे राम'की करुण कराह,
में राम-राज्य चीत्कारे।
बजरंगी के जंगी बेटे,
अपना घर ही जारे।
और अल्लाह की बात,
न पूछ,दर दर फिरे मारे।
बलवाई कसाई क़ाफ़िर,
मस्ज़िद में डेरा डारे।
छद्म विचार विमर्श में जीता,
बुद्धिजीवी, पाखंडी।
वाद पंथ की सेज पर,
सज गयी ,विचारों की मंडी।
बनते कृष्ण, ये द्वापर के,
राम बने, त्रेता के।
साहित्य कला इतिहास साधक,
याचक अनुचर नेता के।
गांधीगिरी! अब गांधीबाजी!
बस शेष है, गांधी गाली।
उठ न बापू!जमुना तट पर,
क्या करता रखवाली?

Monday 26 October 2015

परम ब्रह्म माँ शक्ति सीता

मातृ शक्ति, जनती संतति
चिर चैतन्य, चिरंतन संगति।
चिन्मय अलोक, अक्षय ऊर्जा
सृष्टि सुलभ सुधारस सद्गति।।
सृजन यजन, मृदु मंगलकारी
जीव जगत की तंतु माता।
वाणी अधर अमृत रस घोले
सुगम बोधमय, जीवन दाता।।
भेद असत् कर सत् उद्घाटन
ज्ञान गान मधु पावन लोरी।
करुणाकर अमृत रस प्लावन
वेद ऋचा मय पोथी कोरी।।
धन्य जनक धन जानकी तोरी
और धन्य! वसुधा का भ्रूण।
अशोक वाटिका कलुषित कारा
जग जननी पावन अक्षुण्ण।।
प्रतीक बिम्ब सब राम कथा में
कौन है हारा और कौन जीता।
राम भटकता जीव मात्र है
परम ब्रह्म माँ शक्ति सीता।।

पुरस्कार-वापसी

भारतेंदु के भारत में
रचना की ऋत है कारियायी।
आवहु मिलहीं अब रोवउ भाई
साहित्कारन दुरदसा देखी न जाहीं।।
वाङ्गमय-वसुधा डोल रही
राजनीति की ठोकर से।
दिनकर-वंशज दिग्भ्रमित हुए
सृजन की आभा खोकर ये।।
'कलम देश की बड़ी शक्ति
ये भाव जगाने वाली।
दिल ही नहीं दिमागों में
ये आग लगाने वाली'।।
कलमकार कुंठित खंडित है
स्पंदन हीन हुआ दिल है।
वाद पंथ के पंक में लेखक
विवेकहीन मूढ़ नाकाबिल है।।
दल-दलदल में हल कर अब
मिट जाने का अंदेशा है।
साहित्य-सृजन अब मिशन नहीं
पत्रकार-सा पेशा है।।
अजब चलन है पेशे का
पारितोषिक भी रोता है।
जैसे प्रपंची कपट से झपटे
वैसे छल से खोता है।।
ऐसे आडम्बर पथिक का
इतिहास करेगा तिरस्कार।
जर्जर जमीर जम्हुरों को
लौटाने दो पुरस्कार।।

Monday 12 October 2015

भोर भोरैया

                   


                भोर भोरैया, रोये रे चिरैया
बीत गयी रैना, आये न सैंया


सौतन बैरन, मंत्र वशीकरण
फँस गये बालम, का करुँ दैया


बिरह के अँगरा, जिअरा जरा जरा
फुदके चिरैया, असरा के छैंया


कलपे पपीहरा, चकवा चकैया
अँसुअन की धार, भरे ताल तलैया


दहे दृग अंजन, काल कवलैया
भटकी मोरी नैया, कोई न खेवैया


               हूक धुक छतिया, मसक गयी अंगिया
               कसक कसक उठे, चिहुँके चिरैया


               भोर भोरैया, रोये रे चिरैया
               बीत गयी रैना, आये न सैंया

                 

उपहार

जली आग में झुलसी लाश 
कफ़न कोटि साठ का 'उपहार'
पहना गया है,
'पंच- परमेश्वर' कोई!

आस्तीन का सांप

वज़ीर ' शरीफ' मेरा
और 'बंदुकची' भी शरीफ़
सियासत-दर-सियासत
सिर्फ 
सिरफिरे शरीफों का मेरा खाप।
इसीलिए तो
अपने 'पाक' विवर में
छुपा रखा है
तेरे 'आस्तीन का सांप'।

रिश्तों की बदबू

खामोश!
ये अभिजात्य वर्ग की 'स्टार' शैली है।
संबंधो की अबूझ पहेली है।
पिटर,दास, खन्ना,इन्द्राणी !
और
न जाने क्या-क्या
गुफ्त-गु चल रही है।
शीना की लाश से ,
रिश्तों की बदबू निकल रही है।