tag:blogger.com,1999:blog-2376745467710236793.post3210267301773142510..comments2024-03-11T20:46:17.151+05:30Comments on विश्वमोहन उवाच : वैदिक वाङ्गमय और इतिहास बोध ------ (१५)विश्वमोहनhttp://www.blogger.com/profile/14664590781372628913noreply@blogger.comBlogger23125tag:blogger.com,1999:blog-2376745467710236793.post-39419247893958186192020-12-22T21:43:02.073+05:302020-12-22T21:43:02.073+05:30जी, अत्यंत आभार आपका।जी, अत्यंत आभार आपका।विश्वमोहनhttps://www.blogger.com/profile/14664590781372628913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2376745467710236793.post-583012892742316562020-12-22T17:33:14.674+05:302020-12-22T17:33:14.674+05:30बहुत सारगर्भित, विस्तृत चर्चा ... कितने ही हिन्दू ...बहुत सारगर्भित, विस्तृत चर्चा ... कितने ही हिन्दू समाज के आयाम एक पोस्ट में समेटे हैं आपने ... समाज के विकास और प्रचलित मान्यताओं का विकास कैसे धर्म, संस्कृति का विस्तार और विकास करता है ये अनूठा विषय है ... दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2376745467710236793.post-75180934086123977542020-12-18T22:52:51.842+05:302020-12-18T22:52:51.842+05:30वैदिक संस्कृति में शाकाहार, सुसंस्कार और लोकाचार प...वैदिक संस्कृति में शाकाहार, सुसंस्कार और लोकाचार पर लेखक का गहन शोध प्रभावित करता है। वही 'पुज' धातु और' काना' शब्द पर खोजबीन हैरान करती हैं। वैदिक वांगमय के सशक्त हस्ताक्षर ' ऋषि 'अगस्त्य' और उनकी पत्नी 'लोपमुद्रा' के बारे में जानना आह्लादित कर गया । सटीक जानकारी से बहुत ज्ञानवर्धन हुआ। कोटि आभार इस सांगोपांग अनुवाद के लिए🙏🙏रेणुhttps://www.blogger.com/profile/16292928872766304124noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2376745467710236793.post-40300325391754308222020-12-09T15:04:32.705+05:302020-12-09T15:04:32.705+05:30जी, बहुत आभार!!!जी, बहुत आभार!!!विश्वमोहनhttps://www.blogger.com/profile/14664590781372628913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2376745467710236793.post-38811077105439403652020-12-09T13:21:57.004+05:302020-12-09T13:21:57.004+05:30बहुत रोचक लेखबहुत रोचक लेखMANOJ KAYALhttps://www.blogger.com/profile/13231334683622272666noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2376745467710236793.post-17328202529378911992020-12-08T16:49:04.863+05:302020-12-08T16:49:04.863+05:30जी, अत्यंत आभार।जी, अत्यंत आभार।विश्वमोहनhttps://www.blogger.com/profile/14664590781372628913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2376745467710236793.post-66429313003059608232020-12-08T16:48:28.438+05:302020-12-08T16:48:28.438+05:30जी, अत्यंत आभार।जी, अत्यंत आभार।विश्वमोहनhttps://www.blogger.com/profile/14664590781372628913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2376745467710236793.post-66332947077037447482020-12-08T16:46:03.399+05:302020-12-08T16:46:03.399+05:30यदि आप श्रृंखला को एकदम शुरू अर्थात पहली कड़ी से प...यदि आप श्रृंखला को एकदम शुरू अर्थात पहली कड़ी से पढ़ें तो ढेर शंकाओ के बारे में स्थिति साफ होने लगेगी। आपके प्रश्न अत्यंत रोचक और सार्थक हैं। वेदों के बहुत बाद पुराणों की रचना हुई। 'इक्ष्वाकु' ऋग्वेद में एक जनजाति के रूप में उपस्थित होते हैं। यह पूरब की जनजाति थी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वैवस्वत मनु सूर्य (विवस्वान) के अमैथुन पुत्र थे। उनके पुत्रों में कुक्षी के कुल में इक्ष्वाकु और राम हुए। और इसी कुल में इक्ष्वाकु के एक अन्य पुत्र निमि विदेह के कुल में राजा जनक हुए। इसलिए दशरथ और जनक दोनों इक्ष्वाकु कुल के और सूर्यवंशी राजा हुए। जैन मान्यताओं में 24 में 22 तीर्थकर भी इक्ष्वाकु वंश के ही थे। बौद्ध मान्यताओं में स्वयं भगवान बुद्ध इसी कुल के थे क्योंकि लिच्छवी और शाक्य विदेह के कुल के ही माने जाते हैं। वैदिक संस्कृति का उदय पश्चिमी भारत में हुआ मानते हैं। आपके दूसरे प्रश्न में तो इस श्रृंखला में भी थोड़ा प्रकाश है। लेकिन इसे आप पहली कड़ी से पढ़िए और आगे की श्रृंखलाओं में साथ साथ चलिए तो हम और सार्थक चर्चा के पाएंगे। फिलहाल आर्य और द्रविण दोनों अलग प्रजाति न होकर एक ही हैं। यह केवल भौगोलिक पहचान है। आपका बहुत आभार आपकी इस रुचि के लिए। आपके विमर्श और प्रश्न का हृदय से आभार।विश्वमोहनhttps://www.blogger.com/profile/14664590781372628913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2376745467710236793.post-82862847143719892512020-12-08T15:26:19.860+05:302020-12-08T15:26:19.860+05:30आदरणीय सर,
सादर प्रणाम। आपका लेख पढ़ कर बहुत आ...आदरणीय सर,<br /> सादर प्रणाम। आपका लेख पढ़ कर बहुत आनंद आता है। सारी बातें इतनी नयी और ज्ञानवर्धक लगतीं हैं की मैं विस्मित हो जाती हूँ , एकदम भौंचक। <br />मेरी दो जिज्ञासाएँ हैं :-<br />१. आपने इक्ष्वाकु जाती का वर्णन किया है जिनमें आपने महाराज जनक का भी नाम लिया, क्या ये वही जनक जी हैं जो हमारी माँ जानकी के पिता बने ? दशरथ जी और प्रभु राम को भी इक्षवाकु के वंशज बताया जाता है। यदि यह वे ही महाराज जनक हैं जिन से हम लोग रामायण में परिचित हैं तो क्या पौराणिक काल और वैदिक काल एक ही था ? क्या पुराणों की रचना वेदों के साथ हुई थी और वेदों में जनक जी का कैसा वर्णन है? और हमारे भगवान जी कब अवतार लिए, उनका लीला काल क्या था:- वैदिक या पौराणिक ?<br /><br />२. आपने वैदिक और द्रविड़ संस्कृति में अंतर बताया है। जितना मैंने अपने विद्यालय में पढ़ा तो यही जाना की वैदिक संस्कृति भारत में हर और फैली हुई थी। वेद सबसे पुराने हिन्दू ग्रन्थ हैं और वैदिक परंपरा हिन्दू धर्म का आदि स्वरुप। यहाँ जो आपने भेद किया है, उसे मैंने आर्य और द्रविड़ के रूप में जाना तो क्या द्रविड़ में वेद नहीं पढ़े जाते थे और क्या वहां पूजा करने की पद्धति अलग थी ? क्या वेद आर्य संस्कृति की दें है ? और द्रविड़ में कौन सी आस्था थी , वे किसे पूजते थे ?<br /><br />आपके लेख पढ़ क्र बहुत कुछ सीखने को मिलता है। आपका हृदय से आभार कि आप हम सब तक हमारी प्राचीन संस्कृति की जानकारी दे कर हमें जागरूक कर रहे हैं, नहीं तो हमारी मूल संस्कृति की कितनी साड़ी बातें हमसे छुपा दी गयीं हैं और उनका स्थान विकृति ने ले लिया। मैं जानती हूँ की दो जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए मैंने आपसे बहुत सारे प्रश्न क्र लिए हैं। आपका इतना सारा समय लेने के लिए क्षमा चाहती हूँ। एक बार पुनः प्रणाम। <br />Ananta Sinhahttps://www.blogger.com/profile/14940662000624872958noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2376745467710236793.post-46464139206653529762020-12-08T15:09:03.150+05:302020-12-08T15:09:03.150+05:30बेहद उपयोगी जानकारीबेहद उपयोगी जानकारीAnuradha chauhanhttps://www.blogger.com/profile/14209932935438089017noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2376745467710236793.post-7696694520959408472020-12-08T14:40:44.278+05:302020-12-08T14:40:44.278+05:30बहुत रोचक जानकारी बहुत रोचक जानकारी Anitahttps://www.blogger.com/profile/17316927028690066581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2376745467710236793.post-38368228347919275342020-12-08T13:49:47.833+05:302020-12-08T13:49:47.833+05:30बहुत महत्वपूर्ण शोधात्मक आलेख ।
साधुवाद 🌹🙏🌹बहुत महत्वपूर्ण शोधात्मक आलेख ।<br />साधुवाद 🌹🙏🌹Dr (Miss) Sharad Singhhttps://www.blogger.com/profile/00238358286364572931noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2376745467710236793.post-29500119317295415182020-12-08T11:47:49.130+05:302020-12-08T11:47:49.130+05:30जी, बहुत आभार!!!जी, बहुत आभार!!!विश्वमोहनhttps://www.blogger.com/profile/14664590781372628913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2376745467710236793.post-58053027727822258822020-12-08T11:26:58.741+05:302020-12-08T11:26:58.741+05:30अगली पीढ़ी हेतु सार्थक लेखन
साधुवादअगली पीढ़ी हेतु सार्थक लेखन<br />साधुवादविभा रानी श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2376745467710236793.post-73878452747099615732020-12-07T19:10:10.542+05:302020-12-07T19:10:10.542+05:30जी, बहुत आभार हृदय से!जी, बहुत आभार हृदय से!विश्वमोहनhttps://www.blogger.com/profile/14664590781372628913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2376745467710236793.post-48126136423841148272020-12-07T19:05:09.731+05:302020-12-07T19:05:09.731+05:30सादर नमस्कार ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्च...सादर नमस्कार , <br />आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (8-12-20) को <a href="https://charchamanch.blogspot.com/" rel="nofollow">"संयुक्त परिवार" (चर्चा अंक- 3909)</a> पर भी होगी।<br /> आप भी सादर आमंत्रित है।<br /> -- <br />कामिनी सिन्हा <br />Kamini Sinhahttps://www.blogger.com/profile/01701415787731414204noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2376745467710236793.post-47353944793363875202020-12-05T12:13:33.319+05:302020-12-05T12:13:33.319+05:30जी, अत्यंत आभार!जी, अत्यंत आभार!विश्वमोहनhttps://www.blogger.com/profile/14664590781372628913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2376745467710236793.post-35342794259064419242020-12-05T12:08:04.653+05:302020-12-05T12:08:04.653+05:30बहुत ही ज्ञानवर्धक सारगर्भित लेख...
वैदिक एवं द्रव...बहुत ही ज्ञानवर्धक सारगर्भित लेख...<br />वैदिक एवं द्रविड़ का आपसी सम्बंध वह भी इतने प्राचीन समय से!!!<br />साधुवाद एवं नमन आपको एवं आपकी लेखनी को जो इतने महत्वपूर्ण और विस्तृत लेख से आने वाली नवयुगों को अपने इतिहास की संस्कृतियों के शुरुआत की जानकारी देगी।<br />अनंत शुभकामनाएं एवं बधाई।Sudha Devranihttps://www.blogger.com/profile/07559229080614287502noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2376745467710236793.post-19028637171200713732020-12-04T15:42:02.154+05:302020-12-04T15:42:02.154+05:30उपयोगी और जानकारीपरक।उपयोगी और जानकारीपरक।डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2376745467710236793.post-18652427517274017822020-12-04T14:28:53.067+05:302020-12-04T14:28:53.067+05:30जी, अत्यंत आभार!!!जी, अत्यंत आभार!!!विश्वमोहनhttps://www.blogger.com/profile/14664590781372628913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2376745467710236793.post-59842050203966075122020-12-04T14:28:25.442+05:302020-12-04T14:28:25.442+05:30जी, अत्यंत आभार!!!जी, अत्यंत आभार!!!विश्वमोहनhttps://www.blogger.com/profile/14664590781372628913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2376745467710236793.post-4307404080609587012020-12-04T12:34:56.120+05:302020-12-04T12:34:56.120+05:30सारगर्भित लेखनसारगर्भित लेखनPammi singh'tripti'https://www.blogger.com/profile/13403306011065831642noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2376745467710236793.post-9602041055202835602020-12-04T10:19:06.986+05:302020-12-04T10:19:06.986+05:30सार्थक लेखन। मेहनत के लिये साधुवाद।सार्थक लेखन। मेहनत के लिये साधुवाद।सुशील कुमार जोशीhttps://www.blogger.com/profile/09743123028689531714noreply@blogger.com