ज़िन्दगी की कथा बांचते बाँचते, फिर! सो जाता हूँ। अकेले। भटकने को योनि दर योनि, अकेले। एकांत की तलाश में!
Sunday, 5 September 2021
वैदिक वांगमय और इतिहास बोध-२६
Friday, 25 September 2020
वैदिक वाङ्गमय और इतिहास बोध-------(७)
(भाग - ६ से आगे)
ऋग्वेद और आर्य सिद्धांत: एक युक्तिसंगत परिप्रेक्ष्य - (घ )
(मूल शोध - श्री श्रीकांत तलगेरी)
(हिंदी-प्रस्तुति – विश्वमोहन)
अन्य वैदिक ग्रंथों का रचनाकाल
दूसरा मुख्य बिंदु है, अन्य वैदिक ग्रंथों यथा – अन्य संहिताएँ, ब्राह्मण ग्रंथों, अरण्यकों, उपनिषद और ब्रह्म-सूत्रों की रचना के काल को ऋग्वेद के सापेक्ष निर्धारित करना।
क्योंकि अब यदि आप ऋग्वेद को ही १५०० ईसा पूर्व का मानने लगें तो क्या इसका यह मतलब निकाल लें कि बाक़ी ग्रंथ भी अनुवर्ती क्रम में क्रमशः लिखाते चले गए?
सच में, ऐसा सोचने के लिए ऐसी कोई बाध्यता नहीं कि इन सभी रचनाओं के काल का आपस में कुछ लेना-देना नहीं है। हालाँकि, सभी रचनाओं का एक मान्य अनुवर्ती कालक्रम है, लेकिन तब भी इस बात को मानने का कोई कारण नहीं है कि सभी ग्रंथों की अपनी पूर्णता में रचे जाने का समय एक दूसरे से बिल्कुल हटकर है। अधिकांश पौराणिक ग्रंथों का या पुराणों के सबसे पुरातन भाग की रचना भी उत्तर वैदिक काल के भिन्न-भिन्न काल-खंडों में ऋग्वेद के नए मंडलों के साथ-साथ ही शुरू हो गयी होगी। पूजा-पाठ में प्रयोग होने के कारण ऋग्वेद की ऋचाएँ अपने मौलिक और शुद्धतम स्वरूप को क़ायम रखने में सफल हो गयीं जबकि अन्य ग्रंथों को यह कामयाबी नहीं मिली। इसी कारण नए मंडल भी भाषा के पुराने आवरण में ही बँधे रहे, जबकि बाक़ी ग्रंथों की भाषा में संशोधन, परिष्करण, और परिमार्जन की प्रक्रिया चलती रही। अब इनके रचे जाने के काल-क्रम की सही-सही गणना के लिए विस्तार से इनकी जाँच-परख करनी पड़ेगी। विशेष रूप से उन तमाम खगोलीय बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करना होगा जिनकी चर्चा इन ग्रंथों में है।
ग्रंथों में उपलब्ध सामग्रियों के भौगोलिक सबूत :
क्या ऊपर वर्णित सामग्रियों के आलोक में ऐसे परिदृश्य की सर्जना सम्भव है जिसमें भारतीय आर्यों का विस्थापन ३००० ईसापूर्व में बाहर से भारत के भीतर की ओर हो अर्थात उत्तर भारत में उनके विस्तार की दिशा पश्चिम से पूरब की ओर हो? ऋग्वेद में मौजूद साक्ष्य तो उलटी दिशा में ही गंगा बहाते हैं। मतलब, भारतीय आर्यों के भारत के अंदर से भारत के बाहर पूरब से पश्चिम की ओर चलने की कहानी कहते हैं।
ऋग्वेद के भौगोलिक विस्तार को मुख्यतः तीन भागों में बाँटा जा सकता है :-
पूर्वी भाग
यह सरस्वती नदी के पूरब की ओर, अर्थात आज के हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र हैं।
मध्य भाग
सप्तसिंधु क्षेत्र जो सरस्वती और सिंधु के बीच का भाग है। यह मुख्य रूप से आज के पाकिस्तान के ऊपर का आधा और उससे सटे भारत वाले पंजाब का भाग है।
पश्चिमी भाग
यह सिंधु और इसके पश्चिम का भाग है जो मुख्यतः अफगानिस्तान और उससे सटा पाकिस्तान का पश्चिमोत्तर भाग है।
पूर्वी भाग वाले वैदिक क्षेत्र की भौगोलिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं :-
नदियों के नाम : सरस्वती, द्रसद्वती/हरियुपिया/याव्यवती, अपय, अश्मावती, अंशुमाली, यमुना, गंगा, जाह्नवी।
जगहों के नाम : किकत, इलास्पद/इल्यास्पद (परोक्ष रूप से ‘वार-अ-पृथिव्या’, ‘नभ-पृथिव्या’)।
पशुओं के नाम : इभा/वरण/हस्तिन/सरणी (हाथी), महिष (भैंस), ग़ौर (भारतीय बैल), मयूर (मोर), प्रस्ती (चीतल, धारीदार हिरन)।
झील के नाम : मानस
मध्य भाग वाले क्षेत्र की भौगोलिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं : -
नदियों के नाम : सतुद्री, विपाशा, परस्नी, असिक्नि, वितस्ता, मरूद्वर्धा।
जगहों के नाम : सप्त-सैंधव ( परोक्षत: सप्त+सिंधु)।
पश्चिमी भाग की भौगोलिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं :-
नदियों के नाम : त्रस्तमा, सुस्रतु, अनिताभ, रस, श्वेत्य, कुभा, क्रिमु, गोमती, सरयू, महत्नु, श्वेत्यवारी, सुवत्सु, गौरी, सिंधु (सिंधु नदी), सुसोमा, आर्ज़िक्य।
जगह का नाम : गांधार।
पहाड़ों के नाम : सुसोम, अर्जिक, मुजावत।
पशुओं के नाम : ऊष्ट्र (बैक्ट्रियायी ऊँट), मथ्र (अफ़ग़ानी घोड़े), छाग (पहाड़ी बकरी), मेष (पहाड़ी भेड़), वर्स्नि (मेमना), ऊरा(बकरा), वराह/वराहु (सुअर)
झील के नाम : सर्यानवत(ती)
हम जैसा कि देख चुके हैं कि ऋग्वेद के पुराने मंडलों के रचे जाने का समय ३००० ईसापूर्व से भी काफ़ी पहले का है। अब यदि भारतीय-आर्य पश्चिमोत्तर दिशा से भारत में घुसे थे और बाद में पूरब की ओर उत्तर भारत में फैले तो उन्हें उत्तर-पश्चिम के भूगोल का ज्ञान पहले होता और पूरब के भूगोल से परिचय बाद में। फिर ऋग्वेद में भी दोनों भागों के भूगोल का वर्णन भी उसी क्रम में मिलता। लेकिन तथ्य बिल्कुल विपरीत है। ऋग्वेद को पढ़ने पर साफ़-साफ़ दिखता है कि पुराने मंडलों के लिखे जाने के समय भारतीय आर्य उत्तर-पश्चिम के भूगोल से बिल्कुल अनजान थे। जैसे-जैसे पुराने मंडलों से नए मंडलों की ओर बढ़ते हैं वैसे-वैसे उनके भारत के अंदरूनी हिस्सों से पश्चिम की ओर भौगोलिक विस्तार की तस्वीर साफ़ होती जाती है।
नदियों को छोड़कर पूरब और पश्चिम की शेष भौगोलिक विशेषताओं की तुलना :
पूरब – ऋग्वेद में नदियों को छोड़कर पूरब की बाक़ी भौगोलिक विशेषताओं के वर्णन का विवरण इस प्रकार है।
पुराने मंडल २, ३, ४, ६ और ७ : २२ सूक्त, २३ मंत्र और २४ नाम।
संशोधित मंडल २, ३, ४, ६ और ७ : ४ सूक्त, ६ मंत्र और ७ नाम।
नए मंडल १, ५, ८, ९ और १० : ६९ सूक्त, ८१मंत्र और ८५ नाम।
ऊपर के अध्ययनों से यह स्पष्ट दिखता है कि पूरब के भौगोलिक संदर्भों का विवरण पूरे ऋग्वेद में पुराने मंडलों से लेकर नए मंडलों तक छितराया हुआ है। हम इन्हें प्राचीनतम सूक्तों से लेकर सबसे अर्वाचीन मंत्रों तक में समान रूप से उपस्थित पाते हैं। और दूसरी बात यह है कि सिर्फ़ पूरब की इन भौगोलिक विशेषताओं की ऋग्वेद के पुराने से लेकर नए मंडलों में समवेत उपलब्धता तक ही बात सीमित नहीं है, बल्कि जिन संदर्भों में और जितनी स्पष्टता से उनका उल्लेख हुआ है, यह पूरब से उनके प्राचीन और प्रचुर परिचय की प्रगाढ़ता को प्रदर्शित करता है। इन पशुओं का उल्लेख कोई ऐसे ही हल्के में केवल नाम गिनाने के लिए नहीं कर दिया गया है, बल्कि समयुगीन लोक-परम्परा और समकालीन परिवेश में ये पशु वैदिक लोकजीवन के कितने अभिन्न और महत्वपूर्ण अंग थे, इनका स्पष्ट चित्र ऋग्वेद में इन पशुओं के वर्णन से मिलता है। उदाहरण के तौर पर मरुत के राजसी रथ को खींचने वाले दागधारी हिरन हैं। भिन्न-भिन्न देवताओं के शौर्य और शक्ति के अलंकरण के रूप में भैंसों और साँड़ों का नाम लिया गया है। यज्ञ की वेदी पर सोमरस का पान करने वाले सोम-पिपासु देवताओं की तुलना उन प्यासे जंगली भैंसों के उतावलेपन से की गयी है जो अपनी प्यास बुझाने वन-सरोवर की ओर दौड़ते हैं। इंद्र के घोड़े की पूँछ के फैले गुच्छे की उपमा मोर के पंखों के विस्तार से की गयी है। हाथी तो वैदिक लोगों की परम्परा और संस्कृति में ऐसे घुले-मिले हैं मानों उनके परिवार के सदस्य ही हों। कहीं इंद्र की ताक़त की तुलना हाथी से की गयी है [६/१६/(१४)], कहीं जंगल की झाड़ियों को चीरकर अपनी राह बनाते गजदल का वृतांत है [१/६४/(७), १/१४०/(२)], कहीं भीषण गरमी से मतवाले हाथी के दौड़ने का दृश्य है [८/३३/(८)], कहीं शिकारियों द्वारा जंगली हाथियों के पीछा किए जाने की चर्चा है [१०/४०/(४), कहीं धनिक घर के दरवाज़े पर पालतू हाथियों के परवरिश की कहानी है [१/८४/(१७)], कहीं शक्तिशाली राजा की सवारी के रूप में सजे-धजे ऐरावत की ऐश्वर्य- महिमा है [४/४/(१), कहीं पारम्परिक उत्सवों में उनकी सहभागिता के श्लोक हैं [९/५७/(३) तो कहीं युद्ध-भूमि को प्रयाण कर रही गज-सेना का वृतांत है [६,२०,(८)]।
पश्चिम :
अब पश्चिम के भौगोलिक संदर्भों के ऋग्वेद में वर्णन के विवरण को देखें –
पुराने मंडल २, ३, ४, ६ और ७ : कोई सूक्त नहीं, कोई मंत्र नहीं।
संशोधित मंडल २, ३, ४, ६ और ७ : कोई सूक्त नहीं और कोई मंत्र नहीं।
नए मंडल १, ५, ८, ९ और १० : ४४ सूक्त, ५२ मंत्र और ५३ नाम।
उपरोक्त तथ्यों के अवलोकन से यह पता चलता है कि पुराने मंडलों में पश्चिम के भौगोलिक संदर्भ बिल्कुल ग़ायब हैं, जबकि पूरब के इन तत्वों के साथ ऐसी बात नहीं। पश्चिम के भौगोलिक संदर्भों का तो पाँचवा मंडल जो ऋषिकुल द्वारा ही रचित है लेकिन सबसे अर्वाचीन है, उसमें भी कोई उल्लेख नहीं मिलता है। ध्यान रहे पाँचवाँ मंडल बाक़ी मंडल (१, ८, ९ और १०) जो ऋषिकुल द्वारा नहीं रचे गए हैं, उनसे पहले का है। सबसे रोचक तो यह है कि गांधार से मिलता जुलता एक शब्द ‘गंधर्व’ है जो पश्चिम के पहाड़ों में सोम के स्वामी के रूप में प्रकट होता है। यह शब्द भी मात्र नए मंडलों में ही आता है, संशोधित मंडल में मात्र एक बार आया है और पुराने मंडलों में तो कभी भी नहीं आया है।
Friday, 4 September 2020
वैदिक वाङ्गमय और इतिहास बोध-------(६)
मंडल
|
सूक्त संख्या
|
सूक्तों की कुल संख्या
|
५ (नया)
|
३ से ६, २४, २५, २६, ४६, ४७, ५२ से ६१, ८१ और ८२
|
२१
|
१ (नया)
|
१२ से २३, १००
|
१३
|
८(नया)
|
१ से ५, २३ से २६, ३२ से ३८, ४६, ६८, ६९, ८७, ८९, ९०, ९८ और ९९
|
२४
|
९ (नया)
|
२, २७ से २९, ३२, ४१ से ४३ और ९७
|
९
|
१०
(नया)
|
१४ से २९, ३७, ४६, ४७, ५४ से ६०, ६५, ६६, ७५, १०२, १०३, ११८, १२०, १२२, १३२, १३४, १३५, १४४, १५४, १७४, और १७९
|
४१
|
मंडल
|
सूक्त संख्या/(मंत्र संख्या)
|
कुल सूक्त
|
कुल मंत्र/नाम
|
७ (संशोधित)
|
३३/(९)
|
१
|
१/१
|
४ (संशोधित)
|
३०/(१८)
|
१
|
१/१
|
५ (नया)
|
१९/(३), २७/(४, ५, ६), ३३/(९), ३६/(६), ४४/(१०), ५२/(१), ६१/(५,१०), ७९/(२), ८१/(५)
|
९
|
१२/१२
|
१ (नया)
|
३३/(८), ३५/(६), ३६/(१०, ११, १७, १८), ३८/(५), ४५/(३, ४), ८३/(५०, १००/(१६, १७), ११२/(१०, १५, २०), ११६/(२, ६, १६), ११७/(१७, १८), १२२/(७, १३, १४), १३९/(९), १६३/(२), १६४/(४६)
|
१४
|
२६/२६
|
८ (नया)
|
१/(३०, ३०, ३२), २/(३७, ४०), ३/(१६), ४/(२०), ५(२५), ६/(४५), ८/(१८, २०), ९(१०), २१(१७, १८), २३/(१६,२३,२४), २४/(१४, १२, २३, २८, २९), २६/(९, ११), ३२/(३०), ३३/(४), ३४/(१६), ३५/(१९, २०, २१), ३६/(७), ३७/(७), ३८/(८), ४६/(२१, २३), ४९/(९), ५१/(१, १), ६८/(१५, १६), ६९/(८, १८), ८६/(१७), ८७/(३)
|
२४
|
४२/४४
|
९ (नया)
|
४३/(३), ६५/(७)
|
२
|
२/२
|
१० (नया)
|
१०/(७, ९, १३, १४), १२(६), १३(४), १४/(१, ५, ७, ८, ९, १०, ११, १२, १३, १४, १५), १५/(८), १६/(९), १७/(१), १८/(१३), २१/(५), ३३/(७), ४७/(६), ४९/(६), ५१/(३), ५२/(३), ५८/(१), ५९/(८), ६०/(७, १०), ६१/(२६), ६४/(३),७३/(११), ८०/(३), ९२/(११), ९७/(१६), ९८/(५, ६, ८), १२३/(६), १३२/(७, ७), १३५/(१७), १५४/(४, ५), १६५/(४)
|
२९
|
४६/४७
|
मंडल
|
सूक्त संख्या/(मंत्र संख्या)
|
कुल सूक्त
|
कुल मंत्र
|
३
(संशोधित)
|
३६/(१६, १७, १८)
|
१
|
३
|
५
(नया)
|
१, ३-६, ९, १०, २०, २४-२६, ३१, ३३-३६, ४४, ४६-४९, ५२-६२, ६७, ६८, ७३-७५, ८१, ८२
|
३९
|
३६२
|
१
(नया)
|
१२-३०, ३६-४३, ४४-५०, ९९, १००, १०५, ११६-१३९
|
६१
|
७१०
|
८
(नया)
|
१-५, १०, १४, १५, २३-३८, ४३-५१, ५३, ५५-५८, ६२, ६८, ६९, ७५, ८०, ८५-८७, ८९, ९०, ९२, ९७-९९
|
५२
|
८७८
|
९
(नया)
|
२, ३, ५-२४, २७-२९, ३२-३६, ४१-४३, ५३-६०, ६३, ६४, ६८, ७२, ८०-८२, ९१, ९२, ९४, ९५, ९७, ९९-१०३, १११, ११३, ११४
|
६२
|
५४७
|
१०
(नया)
|
१-१०, १३-१९, ३७, ४२-४७, ५४-६६, ७२, ७५-७८, ९०, ९६-९८, १०१-१०४, १०६, १०९, १११-११५, ११८, १२०, १२२, १२८, १३०, १३२, १३४, १३५, १३७, १३९, १४४, १४७, १४८, १५१, १५२, १५४, १५७, १६३, १६६, १६८, १७०, १७२, १७४, १७५, १७९, १८६, १८८, १९१
|
९५
|
८९२
|
मंडल
|
सूक्त संख्या/(मंत्र संख्या)
|
कुल सूक्त
|
कुल मंत्र/नाम
|
६
(संशोधित)
|
१५/(१७), १६/(१३, १४), ४७/(२४)
|
३
|
४/४
|
३
(संशोधित)
|
३८/(६), ५३/(२१)
|
२
|
२/२
|
७
(संशोधित)
|
३३/(९, १२, १३), ५५/(८, ८), ५९/(१२), १०४/(२४)
|
४
|
६/७
|
४
(संशोधित)
|
३०/(८, १८), ३७/(७), ५७/(७, ८)
|
३
|
५/५
|
२
(संशोधित)
|
३२/(८), ४१/(५, १२)
|
२
|
३/३
|
५
(नया)
|
१०/(३, ६), १८/(२), १९(३, ३), २७(१, ४, ५, ६), ३०/(९, १२, १४), ३१(१०), ३३(९, १०), ३४(८), ३५(४), ३६(३, ६), ४१(५, ९), ४४(५, १०, १०, १०, ११, ११, १२, १२), ४५/(११), ५२/(१)५३/(१३), ५४/(१३), ६१/(५, ६, ९, १०, १८, १९), ६२/(६, ७, ८), ६४/(७), ७४/(४), ७५/(८), ७९/(२), ८१(५)
|
२३
|
४२/४७
|
१
(नया)
|
७(१), १०/(२), १८/(१),२२/(१४), २३/(२२), २४/(१२, १३), २५/(१५), ३०/(३,४), ३३/(८, १४, १५)३५/ (६), ३६(१०,१०, १०, ११, १७, १७, १८), ३८(५), ३९(३), ४२(९), ४३/(४, ६), ४४/(६), ४५/(३, ३, ३, ४), ५१/(१, ३, १३), ५२/(१), ५९/(१), ६१(७), ६६(१), ८०/(१६), ८३/(५, ५), ८८/(१, ५), ९१/(६), १००/(१६,१७), १०४/(३), ११२/(७,९, १०, १०, ११, १२, १५, १५, १५, १९, २०, २३, २३), ११४/(५), ११६/(१, २, ६, ६, १२, १६, १६, २०, २१, २३), ११७/(७, ८, ८, १७, १७, १८, १८, २०, २२, २४), ११९/(९), १२१/(११), १२२/(४, ५, ७, ७, १३, १४), १२५/(३), १२६/(३), १३८/(२), १३९/(९), १४०/(१), १५८/(५), १६२/(३, ७, १०, १०, १५), १६३/(२, २), १६४/(७, १६, ४६), १६७/(२, ५, ६), १६९/(३), १८७/(१०), १८८/(५), १९०/(१), १९१/(१६)
|
५०
|
९५/११३
|
८
(नया)
|
१/(११/३०, ३०, ३२), २/(१, ९, ३७, ३८, ४०, ४०, ४१), ३/(९, १०, १२, १२, १२, १६), ४/(१, २, २, १९, २०), ५/(२५, २५, ३७, ३७, ३७, ३८, ३९), ६/(६, ३९, ४५, ४६, ४६, ४८), ७/(२३), ८/(१८, २०), ९/(७, १०, १५), १२/(१६), १७/(८, १२, १४), १९/(२, ४, ३७, ३७, ३७, ३८, ३९), ६/(६, ३९, ४५, ४६, ४६, ४८), ७/(२३), ८/(१८, २०), ९/(७, १०, १५), १२/(१६), १७/(८, १२, १४), १९/(२, ४, ३७), २०/(४), २१/(१७, १८), २३/(२, १६, २३, २४, २४, २८), २४/(७, १४, १८, २२, २३, २८, २८, २९), २५/(२, २२), २६/(२, ९, ११), २७/(१९), ३२(१, २, ३०), ३३/(४, १७), ३४/(३, १६), ३५/(१९,२०,२१), ३६/(७), ३७/(७), ३८/(८), ४५/(५, ११, २६, ३०), ४६/(२१, २१, २१, २२, २४, २४, ३१, ३३), ४७/(१३, १४, १५, १६, १७), ४९/(९), ५०/(५), ५१/(१, १, १, १, १, २, २), ५२/(१, २, २, २, २), ५४/(१, २, २, ८), ५५/(३)। ५६/(२। ४), ५९/(३), ६२/(१०), ६६/(८), ६८/(१०, १५, १५, १६, १६, १७), ६९/(८, १८), ७०/(१, ५), ७१/(२, १४), ७४/(४, ४, १३, १३, १३), ७५/(६), ७७/(२, ५, १०, १०), ८०/(८), ८५/(३, ४), ८७/(३), ९१/(३, ५), ९२/(२, २५), ९३/(१), ९७/(१२), ९८/(९), १०३/(८)
|
५५
|
१२८/१५७
|
९
(नया)
|
८/(५), ११/(२, ४), ४३/(३), ५८/(३), ६१/(१३), ६५/(७), ६७/(३२), ८३/(४), ८५/(१२), ८६/(३६, ४७), ९६/(१८), ९७/(७, १७, ३८), ९८/(१२), ९९/(४), १०७/(११), ११२/(४), ११३/(३, ८), ११४/(२)
|
१८
|
२३/२३
|
१०
(नया)
|
८/(८), ९/(८), १०/(४, ७, ९, ३, १४), ११/(२), १२/(६), १३/(४), १४/(१, १, ५, ५, ५, ६, ७, ८, ९, १०, ११, १२, १३, १४, १५), १५/(८), १६/(९), १७/(१, १, २, ५), १८/(१३, १३), २०/(१०), २१/(५, ५), २३/(६, ७), २४/(४), २७/(७, १०, १७), २८/(४), ३१(११), ३३/(७), ३४/(१, ११), ३९/(७), ४७/(३, ६), ४८/(२), ४९/(५, ६), ५१/(३), ५२/(३), ५५/(८), ५८/(१, १), ५९/(६, ८, १०), ६०/(५, ७, १०, १०, १०,), ६१/(१३, १७, १८, २१, २६), ६२/(८), ६३/(१७), ६४/(२, ३, ८, १६, १७), ६५/(१२, १२), ६७/(७), ७२/(३, ४), ७३/(११), ८०/(३), ८२/(२), ८५/(५, ६, ३७, ३७, ४०, ४१), ८६/(४, ६, २३, २३), ८७/(१२, १६), ८९/(७), ९०(५, १३), ९१/(१४), ९२/(१०, ११), ९३/(१४, १५, १५), ९४/(१३), ९५/(३, १५), ९६/(५, ६, ८), ९७/(१६), ९८/(१, ३, ५, ६, ७, ८), ९९/(६, ११), १०१(३), १०३/(३), १०५/(२), १०६/(५, ६), १०९/(४), ११५/(८, ९), १२०/(६, ९), १२३/(४, ६, ७), १२४/(४), १२९/(१), १३०/(५), १३२/(७, ७), १३५/(१, ७), १३६/(६), १३९/(४, ६), १४६/(६), १४८/(५), १५०/(३), १५४/(४, ५), १५९/(३), १६४/(२), १६५/(१, २, ३, ४, ४, ५), १६६/(१), १७७/(२), १८९/(२)
|
७९
|
१४६/१६०
|
मंडल
|
सूक्त संख्या/(मंत्र संख्या)
|
कुल मंत्र
|
६
(संशोधित)
|
७५/(१७)
|
१
|
५
(नया)
|
६/(१ से १०), ७/(१०), ९/(५, ७), १०/(४, ७), १६/(५), १७/(५), १८/(५), २०/(४), २१/(४), २२/(४), २३/(४), ३५/(८), ३९/(५), ५०/(५), ५२/(६, १६, १७)६४/(७), ६५/(६), ७५/(१ से ९), ७९/(१ से १०)
|
४९
|
१
(नया)
|
२९/(१ से ७), ८०/(१ से १६), ८१/(१ से ९), ८२/(१ से ५), ८४/(१० से १२), १०५/(१ से ७ और ९ से १८), १९१/(१० से १२)
|
६०
|
८
(नया)
|
१९/(३७), ३१/(१५ से १८), ३५/(२२, २४), ३६/(१ से ७), ३७/(२ से ७), ३९/(१ से १०), ४०/(१ से ११), ४१/(१ से १०), ४६/(२१, २४, ३२), ४७/(१ से १८), ५६/(५), ६२/(१ से ६ और १० से १२), ६९/(११, १६), ९१/(१ और २)
|
८६
|
९
(नया)
|
११२/(१ से ४), ११३/(१ से ११), ११४/(१ से ४)
|
१९
|
१०
(नया)
|
५९/(८, ९), ६०/(८, ९), ८६/(१ से २३), १३३/(३ से ६), १३४/(१ से ७), १४५/(६०, १६४/(५), १६६/(५)
|
४१
|
सम्पूर्ण ऋग्वेद के समस्त मंडलों में रचनाकारों
के नाम, अन्य नाम और छंद विधान की मिती ग्रंथ और अवेस्ता के साथ तात्विक तुलना (* पुराने मंडल के संशोधित सूक्तों और मंत्रों को छोड़कर)
|
पुराने मंडल
(२, ३, ४, ६, ७)
सूक्तों की संख्या
|
पुराने मंडल
(२, ३, ४, ६, ७)
मंत्रों की संख्या
|
नए मंडल
(१, ५, ८, ९, १०)
सूक्तों की संख्या
|
नए मंडल
(१, ५, ८, ९, १०)
मंत्रों की संख्या
|
सम्पूर्ण ऋग्वेद *
|
२८०
|
२३५१
|
६८६
|
७३११
|
रचनाकारों के नाम के तत्व की समानता
|
कोई नहीं
|
कोई नहीं
|
३०९
|
३३८९
|
अन्य संदर्भों में नाम के तत्व की समानता
|
कोई नहीं
|
कोई नहीं
|
२२५
|
४३४
|
छंद- विधान के तत्व की समानता
|
कोई नहीं
|
कोई नहीं
|
५०
|
२५५
|
मंडल
|
सूक्त-संख्या/(मंत्र-संख्या)
|
५ (नया)
|
१३/(६), ५८/(५
|
१ (नया)
|
३२/(१५), १४१/(९), १३८/(२), १६४/(११, १२, १३, ४८)
|
८(नया)
|
५/(३७), ६/(४८), २०/(१४), ४६/(२२, ३१), ७७/(३)
|
१०(नया)
|
७८/(४)
|