Thursday 18 May 2017

प्रेम पंथ के पाथेय!

पता नही क्यों भावुक बनकर,
सपनो में, मैं खो जाता हूँ।
स्वप्न लोक में, स्वप्न सखा संग,
बीज प्यार के बो जाता हूँ।

परम ब्रह्म के भरम विश्व में,
पीव जीव उसकी माया है।
दृश्य जगत के सत चेतन की
सपना अपरा प्रच्छाया है।

सपनो के अंदर सपनो में
कभी मचलता कभी सिसकता।
अभीप्सा ये जिजीविषा की
माया डोर में कसा खिसकता।

प्रेम पुरुष अनुराग तुम्हारा
जीवन रस से कर आपूरित।
प्रकृति रानी सजे तुम्हारी
प्राणों के कण होकर पुलकित ।

प्राण पाश, हे प्राण! तुम्हारे,
श्वासों में सुरभि  घोल गए।
दे अंग अंग ऊष्मा चेतन ,
बंधन ग्रंथि के खोल गए।

घोल रही मधु रास रागिनी
प्रीत वसंत की अमराई जो,
ज्ञात प्रिये यह माया चित्र है,
परम सत्य की परछाई वो!

प्रीत समाधि में उतरेंगे,
प्रेम पंथ के पाथेय हम।
कर स्वाहा सर्वस्व विसर्जन,
द्वितीयोनास्ति, एकोअहम।



Sunday 14 May 2017

माँ मेरा उद्धार करो!

वसुधा के आंगन में गुंजी किलकारी,
पय पान सुधा संजीवन दात्री महतारी।
साँसों मे घोली माँ ने वत्सल धारा,
मैं प्राणवंत पुलकित नयनो का तारा।

सब अर्पण तर्पण किये तूने न्यौछावर,
जननी जीव जगत जंगम चेतन स्थावर।
शीश समर्पण माँ तेरे अंको को,
सह न पाये विश्व विषधर डंकों को।

मञ्जूषा ममता की, माँ, अमृत छाया,
निमिष निमिष नित प्राण रक्त माँ पाया।
क्रोड़ करुणा कर कण कण जीवन सिंचित,
दृग कोशों से न ओझल हो तू किंचित।

पथ जीवन माँ, मैं पगु अनथक, तेरी शीतल छाया,
पा लूँ मरम मैं भेद सत्य का , जीव, ब्रह्म और माया।
अब जननी गोदी में तेरे, प्यार करो, मनुहार करो,
मैं शरणागत, कुक्षी में तेरी, माँ मेरा उद्धार करो।

Wednesday 10 May 2017

ज़म्हुरियत : हिन्दुस्तानी तर्ज़-ए-हुकूमत

ज़म्हुरियत
हिन्दुस्तानी तर्ज़-ए-हुकूमत
अवाम और सियासी दल
अबला और सबल
यूं , जैसे
बेगम और बादशाह !
एक बेदम 'वाम'
दूसरा दमदार 'दाम'

बेदम बेगम!
बिस्तर की बांयी कोर पर
कुंथती, कराहती बांयी करवट,
स्वघोषित क्रांतिदूत.....वामांगी!
आँखों से तापती सेकुलर आगि!

और दमदार बादशाह!
दांयी छोर पर,
दक्षिणपंथी करवट लिए,
दहाड़ता बहुरंगी
राष्ट्रदूत भक्त  बजरंगी!

दोनों मज़बूर करवटें बदलने को,
सिर्फ सियासी सहूलियतों के खातिर.
वैशाली की विरासत ले, प्रगतिवादी पंथ,
इज्म एवं वाद की टकसाल में ढलते
अवसर की तलाश में
लोकशाही के खातिर
तथागत और आम्रपाली से 
साथ साथ चलते !