उठ न बापू! जमुना तट पर,
क्या करता रखवाली ?
तरणि तनुजा काल कालिंदी,
बन गयी काली नाली।
क्या करता रखवाली ?
तरणि तनुजा काल कालिंदी,
बन गयी काली नाली।
राजघाट पर राज शयन!
ये अदा न बिलकुल भाती।
तेरे मज़ार से राज पाठ,
की मीठी बदबू आती।
ये अदा न बिलकुल भाती।
तेरे मज़ार से राज पाठ,
की मीठी बदबू आती।
वाम दाम के चकर चाल,
में देश है जाके भटका।
ब्रह्मपिशाच की रण भेरि
शैतान गले में अटका।
में देश है जाके भटका।
ब्रह्मपिशाच की रण भेरि
शैतान गले में अटका।
'हे राम'की करुण कराह,
में राम-राज्य चीत्कारे।
बजरंगी के जंगी बेटे,
अपना घर ही जारे।
में राम-राज्य चीत्कारे।
बजरंगी के जंगी बेटे,
अपना घर ही जारे।
और अल्लाह की बात,
न पूछ,दर दर फिरे मारे।
बलवाई कसाई क़ाफ़िर,
मस्ज़िद में डेरा डारे।
न पूछ,दर दर फिरे मारे।
बलवाई कसाई क़ाफ़िर,
मस्ज़िद में डेरा डारे।
छद्म विचार विमर्श में जीता,
बुद्धिजीवी, पाखंडी।
वाद पंथ की सेज पर,
सज गयी ,विचारों की मंडी।
बुद्धिजीवी, पाखंडी।
वाद पंथ की सेज पर,
सज गयी ,विचारों की मंडी।
बनते कृष्ण, ये द्वापर के,
राम बने, त्रेता के।
साहित्य कला इतिहास साधक,
याचक अनुचर नेता के।
राम बने, त्रेता के।
साहित्य कला इतिहास साधक,
याचक अनुचर नेता के।
गांधीगिरी! अब गांधीबाजी!
बस शेष है, गांधी गाली।
उठ न बापू!जमुना तट पर,
क्या करता रखवाली?
बस शेष है, गांधी गाली।
उठ न बापू!जमुना तट पर,
क्या करता रखवाली?
Malti Mishra: बहुत खूब
ReplyDeleteVishwa Mohan: +Malti Mishra आभार!
वाह...बहुत सुंदर!
ReplyDeleteवाह विश्वमोहन जी !
ReplyDeleteचौकीदारों के इस देश में गांधी किसकी रखवाली करेगा?
इस देश में अपने आदर्शों की, अपने मूल्यों की और अपने प्राणों की रखवाली तो वह कर नहीं पाया.
पेंशन लेकर उसे राष्ट्र-पिता के पद से अवकाश ले लेना चाहिए.
जी, अब तो पेंशन की व्यवस्था भी केवल सांसद और विधायकों तक ही सीमित रह गयी और उसके लिए तो तस्लीमुद्दीन या अनंत सिंह या फिर स्वामी आसाराम चिन्मयानंद बनाना पड़ेगा। फिर अल्लाह-ईश्वर की जगह 'राम-रहीम' का जाप करना पड़ेगा।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 24 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!
Deleteबापू उठो न तुम दोबारा अब वो सम्मान न होगा
ReplyDeleteलाठी वाले बाबा के किसी बात का मान न होगा
अच्छा है बापू सो रहे जमुना तट की रखवाली में
अपने स्वप्नों के रामराज को रख करके सिरहाने में।
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बेहतरीन अभिव्यक्ति।
बापू के विचारों को आत्मसात कर सके यही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
प्रणाम
सादर।
वाह!! लाजवाब जवाब। आपकी इस अप्रतिम प्रतिभा का पूरा साहित्य संसार मुरीद और क़ायल है।
Deleteगांधीगिरी! अब गांधीबाजी!
ReplyDeleteबस शेष है, गांधी गाली।
उठ न बापू!जमुना तट पर,
क्या करता रखवाली?
आप आह्वान कर रहे बापू के , लेकिन आज वो आ जाएं तो कोई उनको पहचानेगा भी नहीं ।
मेरा तो प्रश्न है बापू से -
चले गए तुम क्यों बापू
ऐसे ऊंचे आदर्श छोड़ कर
उन आदर्शों की चिता जली है
आदर्शवाद का खोल ओढ़ कर ।...
1974 में लिखी कविता की प्रथम चार पंक्तियाँ ।
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteगांधीगिरी! अब गांधीबाजी!
ReplyDeleteबस शेष है, गांधी गाली।
उठ न बापू!जमुना तट पर,
क्या करता रखवाली?
मरकर भी चैन नहीं बेचारे बापू को
हे राम'की करुण कराह,
में राम-राज्य चीत्कारे।
बजरंगी के जंगी बेटे,
अपना घर ही जारे।
यहाँ हर आदर्श व्यक्ति मरने पर जीने वालों का पूज्य बन उन्हें अपने नाम का धंधा दे जाता है
लाजवाब सृजन।
जी, हार्दिक आभार।
Deleteउठ न बापू ,जमुना तट पर क्या करता रखवाली ...वाह !!
ReplyDeleteजी, हार्दिक आभार।
Deleteएक बार फिर से पढ़कर बहुत अच्छा लगा।भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteसादर।
प्रणाम।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ३० जनवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आपके इस अप्रतिम स्नेह का आभार।
Deleteबस नमन बापू | लाजवाब |
ReplyDeleteजी, हार्दिक आभार!!
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