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Tuesday 9 August 2022

प्रणव ॐ कार!

जटा जाह्नवी खाती बल है।

नंदीश्वर नीरज, निर्मल हैं।।


विषधर कंठ बने माला हैं।

ग्रीवा गिरीश गरल हाला है।।


विरुपाक्ष, तवस, हंत्र, हर।

विश्व, मृदा, पुष्पलोकन, पुष्कर।।


भक्त पुकारे मन डोले हैं।

अनिरुद्ध, अभदन, भोले हैं।।


ॐ कार की उमा काया हैं।

कल्पवृक्ष उनकी छाया हैं।।


पार कराते सागर भव से।

होते शिव, शक्ति बिन, शव-से।।


भाषा भुवनेश, भाव भवानी।

अर्द्धनारीश्वर औघड़ दानी।।


सती श्रद्धा, विश्वास हैं अंतक।

अर्हत, अत्रि, अनघ, परंतप।।


पशुपति की परा शक्ति है।

चित शक्ति प्रकट होती है।।


चित आनंद, आनंद से इच्छा।

इच्छा, प्रत्यक्ष ज्ञान की शिक्षा।।


चित से नाद, आनंद से बिंदु, इच्छा शक्ति बने ' म ' कार।

ज्ञान से ' उ ' , क्रिया से ' अ ', प्रादुर्भुत प्रणव कार।।