सत्यं ब्रुयात, ब्रुयात प्रियम,
कभी साँच को आँच नहीं।
न ब्रुयात, सत्यं अप्रियम,
भले ख़िलाफ़त, बाँच सही।
बड़ा ताप है, इन बातों में,
कहना कोई खेल नहीं है।
ढोंगी, पोंगी वाजश्रवा का,
नचिकेता से मेल नहीं है।
भले लोक परधाम गया,
पर आख़िर तक सच बोला।
ज्ञान-स्नात शिशु के सच से,
यमराज का मन डोला।
भले प्रताड़ित होता पल को,
नहीं पराजित होता है।
भू, द्यौ और अंतरिक्ष में,
कालजयी यह होता है।
सत्य ढका हो, कनक कवच से,
उसे अनावृत करना है।
परम तत्व से सज्जित होकर,
भव-सागर को तरना है।
सत्यमेव जयते की लय पर,
मृत्यु देव ने किया समर्पण।
जुग-जुग से यह गूँजे जग में,
सत्य नूपुर के सुर की खन-खन।