बादल ऊपर चढ़ आए।
मानों यक्षी की पाती का,
हर हर्फ वे पढ़ आए।
पर्वत बुत बन अड़े खड़े,
सड़कें सर्पीली लेटी हैं।
वायु शीतलता से सिहुरी,
ज्यों पर्जन्य की चेटी हैं।
बदरी भी छाकर छतरी,
छूती नीले अंबर को।
धोती अधोवस्त्रहीन वह,
देवदार दिगंबर को।
चीड़ ताने शंकु सी चूनर,
चिर यौवना बहकी है।
चमन चतुर्दिक चूँ-चूँ, चींचीं,
चिड़िया चकई चहकी है।
उनिंदी-सी सोई शांत चित्त,
सानासर की झील झिलमिल है।
नत्था टॉप से टिप टिप टीपती,
जलधाराओं की हिलमिल है।
पत्नी टॉप, ये हसीन वादियाँ!
हमदम मेरे! एतबार है।
हसरतों की हँसी खुशी का,
पावस का पहिलौटा प्यार है।
(पत्नीटॉप - जम्मू कश्मीर का एक रमणीक पर्वतीय स्थान।
नत्था टॉप - वहां की सबसे ऊंची पर्वत चोटी)
सानासर झील - नत्था टॉप से थोड़ी दूरी पर एक मनोरम झील!)