Tuesday 19 September 2017

आज जो जोगन गीत वो गाऊं.

अधरों के सम्पुट क्या खोलूं ,
मूक कंठों से अब क्या बोलूं.
भावों की उच्छल जलधि में,
आंसू से दृग पट तो धो लूँ .

अँखियन सखी छैल छवि बसाऊं,
पुलकित तन भुजबन्ध कसाऊं.
प्रिया प्रीत सुर उर उकसाऊं,
आज जो जोगन गीत वो गाऊं.

विरह चन्द्र जो घुल घुल घुलता,
गगन प्रेम पूनम पय धुलता.
बन घन घूँघट मुख पट छाऊँ,
आज जो जोगन गीत वो गाऊं.

बनू जुगनू जागूं जगमग कर,
रासूं राका संग सुहाग भर.
राग झूमर सोहर झुमकाऊँ,
आज जो जोगन गीत वो गाऊं.

प्रेम सघन वन पायल रुन झुन,
धुन मुरली मोहन की तू सुन।
बाँसुरिया पर तान चढ़ाऊँ,
आज जो जोगन गीत वो गाऊं!

जग जड़  स्थूल  स्थावर  में,
सूक्ष्म चेतन  जंगम को जगाऊँ.
गुंजू अनहद नाद पुरुष बन,
आज जो जोगन गीत वो गाऊं.


Thursday 7 September 2017

'पूरा सच'

शफ्फाक श्वेत साया,
एक कलपती काया.
सरकी सपने रात,
झकझोरा, जगाया.

कहा, सोये हो!
भाई, उठो जागो.
बांधो बैनर, मोमबती
जुलुस में भागो.

दाभोलकर, पानसेर, कलबुर्गी,
फट फ़टाफ़ट हैटट्रिक!
फिर कन्नड़काठी कलमकार,
गौरी लंकेश पैट्रिक!

कल मुझे सुलाने पर,
गर तुम न सोते!
फट फटा फट फिर,
विकेट यूँ न खोते!

'पंथी' नहीं था मैं,
लो, मान लिया भाई.
चलो, ये भी माना,
लोकल, छोटा पत्रकार कस्बाई.

पर घर की आबरू,
भाई, सब पर भारी.
या लूटना ललना को,
राम-रहीम की लाचारी!

मेरा क्रांतिकारी कद!
कसम से कसमसाया.
पर पुचकार के पूछा,
तुम कौन! किसने बुलाया?

साया सुगबुगाया, फुसफुसाया,
आवाज फुटती, बुझती......
......मै! 'पूरा सच'
रामचन्द्र छत्रपति!