मज़हब के पेशेवरों ने पेशावर
में किया मज़हब को शर्मशार।
मरघट में मची हाहाकार,
पथरायी मासूम आँखे ,
चीखते बच्चों के भर्राये स्वर।
जेहादी जानवरो का खौफनाक मंज़र ,
इंसानियत! चिचियाती चीत्कार।
लहू में सने सलोने
सपने स्याह !
उजड़ी कोखों की कातर कराह,
इंशा अल्लाह!
तेरी इस रहनुमाई को धिक्कार!
रख अपने मज़हबी पैगम्बरों को अपने ही घर
हमें तो सिर्फ एक इंसान की दरकार !
में किया मज़हब को शर्मशार।
मरघट में मची हाहाकार,
पथरायी मासूम आँखे ,
चीखते बच्चों के भर्राये स्वर।
जेहादी जानवरो का खौफनाक मंज़र ,
इंसानियत! चिचियाती चीत्कार।
लहू में सने सलोने
सपने स्याह !
उजड़ी कोखों की कातर कराह,
इंशा अल्लाह!
तेरी इस रहनुमाई को धिक्कार!
रख अपने मज़हबी पैगम्बरों को अपने ही घर
हमें तो सिर्फ एक इंसान की दरकार !
धर्मोन्मादी इंसानों की भीड़ में एक सच्चे इंसान को तलाशते संवेदनशील कविमन की मार्मिक अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!
Deleteरख अपने मज़हबी पैगम्बरों को अपने ही घर
ReplyDeleteहमें तो सिर्फ एक इंसान की दरकार !
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बेहतरीन हर शब्द आग उगल रही है।
मानवता के शत्रुओं को धिक्कार और बहिष्कार किया जाना ही न्याय होगा।
अत्यंत भावपूर्ण सृजन।
प्रणाम
सादर।
उस समय के आतंकी हमले की याद दिला दी ।
ReplyDeleteइंसानियत सच ही मौन है ।
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteमार्मिक सृजन 👌👌!!!
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!
Deleteरख अपने मज़हबी पैगम्बरों को अपने ही घर
ReplyDeleteहमें तो सिर्फ एक इंसान की दरकार !
इंसान ढूंढने पर भी मिलना मुश्किल हो गया है..बहुत ही मर्मस्पर्शी सृजन।
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteइंसान ओर इंसानियत की ही दरकार है । सुंदर सृजन ।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
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