Friday, 8 May 2015

‍‍फुटपाथ्

फुटपाथ पर लेटी लाशों में
मरी मीडिया ने जान न फूंकी होती,
अगर बेबस बेजुबान पर
बिगड़ैल दीर्घकाय दुल्हन सी
गाड़ी ने
अपनी काली काल चकरियों
की अल्हड़  धार न फेरी होती !
और
उस अल्हड़ दुलहनिया का ना
होता वो बाँका सवार
रंगीला नशीला मर्द जवान !
मानवप्रेमी , श्यामल मृग काल
चित्रपट नटखट नट सलमान!

धिक-धिक विधाता ?
 शरम न आयी ?
 ऐसी दुनिया बनायी ?
उस ‘मुराद’ का मर्शिया !
और ‘फरहा’ का फातिहा !
सुनके भी
तुझे कुछ समझ न आई?

अरे!
अट्टालिकाओं के
इन कुशल कारीगर
मज़दूर भाईयों के
बिछौने की जगह
नहीं माँगता तुमसे?

दे सके तो दे बुज़दिल !
 मुर्दा ‘मुराद’
और
फालिस ‘फरहा के
फुदकते बुत में
एक छोटा
किंतु धड़कता
दिल !

और
डपोरशंखी चैनलों की
बरसात में
प्रपंची समाचार वाचक !
यूँ टरटराता ..............!
काश!
आगे की पंक्तियाँ भी
ऐ रब ?
तूँ ही लिख पाता !!!!!

6 comments:

  1. Meena Gulyani: very nice touching lines
    Vishwa Mohan: आभार!!!
    Meena Gulyani: welcome

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  2. Roli Abhilasha (अभिलाषा): Waah
    Vishwa Mohan: आभार!!!

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  3. Kusum Kothari: निशब्द।
    Vishwa Mohan: अत्यंत आभार!!!

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  4. Indira Gupta: वाह ...तीखा व्यंग ....बहुत खूब विश्व मोहन ज़ी
    Vishwa Mohan: अत्यंत आभार!!!

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  5. कई दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ अमानवीयता और असंवेदनशीलता का इतिहास लिख देती हैं | सनसनी का भूखा मीडिया इन घटनाओं को और भी भयावह बना देता है |

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