Monday, 26 October 2015

परम ब्रह्म माँ शक्ति सीता

मातृ शक्ति, जनती संतति
चिर चैतन्य, चिरंतन संगति।
चिन्मय अलोक, अक्षय ऊर्जा
सृष्टि सुलभ सुधारस सद्गति।।
सृजन यजन, मृदु मंगलकारी
जीव जगत की तंतु माता।
वाणी अधर अमृत रस घोले
सुगम बोधमय, जीवन दाता।।
भेद असत् कर सत् उद्घाटन
ज्ञान गान मधु पावन लोरी।
करुणाकर अमृत रस प्लावन
वेद ऋचा मय पोथी कोरी।।
धन्य जनक धन जानकी तोरी
और धन्य! वसुधा का भ्रूण।
अशोक वाटिका कलुषित कारा
जग जननी पावन अक्षुण्ण।।
प्रतीक बिम्ब सब राम कथा में
कौन है हारा और कौन जीता।
राम भटकता जीव मात्र है
परम ब्रह्म माँ शक्ति सीता।।

1 comment:

  1. अमित जैन 'मौलिक': भेद असत् कर सत् उद्घाटन
    ज्ञान गान मधु पावन लोरी।
    करुणाकर अमृत रस प्लावन
    वेद ऋचा मय पोथी कोरी।।

    माँ सीता के गूढ़ किन्तु विराट रूप का विस्तार करती सुंदर रचना। वाह वाह रचना। आपको विजयादशमी की शुभकामनाएं
    Vishwa Mohan: +अमित जैन 'मौलिक' बहुत आभार आपका !!!

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