पता नही क्यों भावुक बनकर,
सपनो में, मैं खो जाता हूँ।
स्वप्न लोक में, स्वप्न सखा संग,
बीज प्यार के बो जाता हूँ।
परम ब्रह्म के भरम विश्व में,
पीव जीव उसकी माया है।
दृश्य जगत के सत चेतन की
सपना अपरा प्रच्छाया है।
सपनो के अंदर सपनो में
कभी मचलता कभी सिसकता।
अभीप्सा ये जिजीविषा की
माया डोर में कसा खिसकता।
प्रेम पुरुष अनुराग तुम्हारा
जीवन रस से कर आपूरित।
प्रकृति रानी सजे तुम्हारी
प्राणों के कण होकर पुलकित ।
प्राण पाश, हे प्राण! तुम्हारे,
श्वासों में सुरभि घोल गए।
दे अंग अंग ऊष्मा चेतन ,
बंधन ग्रंथि के खोल गए।
घोल रही मधु रास रागिनी
प्रीत वसंत की अमराई जो,
ज्ञात प्रिये यह माया चित्र है,
परम सत्य की परछाई वो!
प्रीत समाधि में उतरेंगे,
प्रेम पंथ के पाथेय हम।
कर स्वाहा सर्वस्व विसर्जन,
द्वितीयोनास्ति, एकोअहम।
सपनो में, मैं खो जाता हूँ।
स्वप्न लोक में, स्वप्न सखा संग,
बीज प्यार के बो जाता हूँ।
परम ब्रह्म के भरम विश्व में,
पीव जीव उसकी माया है।
दृश्य जगत के सत चेतन की
सपना अपरा प्रच्छाया है।
सपनो के अंदर सपनो में
कभी मचलता कभी सिसकता।
अभीप्सा ये जिजीविषा की
माया डोर में कसा खिसकता।
प्रेम पुरुष अनुराग तुम्हारा
जीवन रस से कर आपूरित।
प्रकृति रानी सजे तुम्हारी
प्राणों के कण होकर पुलकित ।
प्राण पाश, हे प्राण! तुम्हारे,
श्वासों में सुरभि घोल गए।
दे अंग अंग ऊष्मा चेतन ,
बंधन ग्रंथि के खोल गए।
घोल रही मधु रास रागिनी
प्रीत वसंत की अमराई जो,
ज्ञात प्रिये यह माया चित्र है,
परम सत्य की परछाई वो!
प्रीत समाधि में उतरेंगे,
प्रेम पंथ के पाथेय हम।
कर स्वाहा सर्वस्व विसर्जन,
द्वितीयोनास्ति, एकोअहम।
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