अधरों के सम्पुट क्या खोलूं ,
मूक कंठों से अब क्या बोलूं.
भावों की उच्छल जलधि में,
आंसू से दृग पट तो धो लूँ .
अँखियन
सखी छैल छवि बसाऊं,
पुलकित
तन भुजबन्ध कसाऊं.
प्रिया
प्रीत सुर उर उकसाऊं,
आज
जो जोगन गीत वो गाऊं.
विरह चन्द्र जो
घुल घुल घुलता,
गगन प्रेम पूनम
पय धुलता.
बन घन घूँघट मुख
पट छाऊँ,
आज
जो जोगन गीत वो गाऊं.
बनू जुगनू
जागूं जगमग कर,
रासूं राका संग सुहाग भर.
राग झूमर
सोहर झुमकाऊँ,
आज
जो जोगन गीत वो गाऊं.
प्रेम
सघन वन पायल रुन झुन,
धुन
मुरली मोहन की तू सुन।
बाँसुरिया
पर तान चढ़ाऊँ,
आज
जो जोगन गीत वो गाऊं!
जग जड़ स्थूल स्थावर में,
सूक्ष्म चेतन जंगम को जगाऊँ.
गुंजू
अनहद नाद पुरुष बन,
आज
जो जोगन गीत वो गाऊं.
अमित जैन 'मौलिक''s profile photo
ReplyDeleteअमित जैन 'मौलिक'
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+2
विरह चन्द्र जो घुल घुल घुलता,
गगन प्रेम पूनम पय धुलता.
बन घन घूँघट मुख पट छाऊँ,
आज जो जोगन गीत वो गाऊं
आपकी काव्य की यह विशेषता है कि उसमें अलंकारिक शिल्प और विस्मित कर देने वाले शब्दों का अनुपम चयन होता है। हम धनी हो जाते हैं। कंठ मूक हो गया। बहुत बढ़िया कविवर
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Sep 19, 2017
Vishwa Mohan's profile photo
Vishwa Mohan
+अमित जैन 'मौलिक' अधरों के सम्पुट क्या खोलूं ,
मूक कंठों से अब क्या बोलूं..........आपके सुन्दर संजीवन शब्दों का आभार!
Sep 20, 2017
Pushpendra Dwivedi's profile photo
Pushpendra Dwivedi
+1
वाह बहुत खूब अत्यंत रोचक रचना
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Sep 20, 2017
Vishwa Mohan's profile photo
Vishwa Mohan
+1
+Pushpendra Dwivedi आभार!
Sep 20, 2017
Pushpendra Dwivedi's profile photo
Pushpendra Dwivedi
+Vishwa Mohan अभिनन्दन
ReplyDeleteविरह चन्द्र जो घुल घुल घुलता,
गगन प्रेम पूनम पय धुलता.
बन घन घूँघट मुख पट छाऊँ,
आज जो जोगन गीत वो गाऊं.
अनुप्रास का चमत्कृत प्रयोग और सुघढ़ काव्यशिल्प !!!!!! आलौकिक प्रेम से सराबोर और दिव्य भावों से रची रचना में माधुर्य के क्या कहने !!!!!!!!!!! कुछ लिखते नहीं बनता ------- बस लाजवाब सृजन !!सादर --
जी, अत्यंत आभार आपके अद्भुत आशीष का।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २० मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
अधरों के सम्पुट क्या खोलूं ,
Deleteमूक कंठों से अब क्या बोलूं....!!!!
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteआह
ReplyDeleteबेहतरीन।
अत्यंत आभार
Deleteअँखियन सखी छैल छवि बसाऊं,
ReplyDeleteपुलकित तन भुजबन्ध कसाऊं.
प्रिया प्रीत सुर उर उकसाऊं,
आज जो जोगन गीत वो गाऊं.
भावपूर्ण लेखन👌👌एक बार फिर से रचना पढ़कर बहुत अच्छा लगा। हार्दिक
शुभकामनायें विश्वमोहन जी 🙏🙏
आभार आपके आशीष का!!!
DeleteSuper!!!
ReplyDeleteआभार!!!
DeleteSlute u 🙏🙏🙏
ReplyDeleteआपके आशीष के अतिरेक का अतिरिक्त आभार!!!
Deleteअँखियन सखी छैल छवि बसाऊं,
ReplyDeleteपुलकित तन भुजबन्ध कसाऊं.
प्रिया प्रीत सुर उर उकसाऊं,
आज जो जोगन गीत वो गाऊं.
👌👌👌🙏🙏🌺🌺
हार्दिक आभार🙏
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