Wednesday 25 April 2018

चल पथिक, अभय अथक पथ पर


डर भ्रम मात्र अवचेतन का,
शासित संशय स्पंदन का।
जब जीव जगत है क्षणभंगुर,
फिर, जीना क्या और मरना क्या!

चल पथिक, अभय अथक पथ पर,
मन में घर डर यूँ करना क्या!

करते गर्जन घन सघन गगन,
होता धरती का व्याकुल मन।
आकुल अंधड़ प्रचंड पवन,
नीड़ बनना और बिखरना क्या!

चल पथिक, अभय अथक पथ पर,
मन में घर डर यूँ करना क्या!

करे वारिद वार धरा उर पर,
तड़ित ताप, अहके अम्बर।
आँखों में आंसू अवनि के
निर्झर का झर झर झरना क्या!

चल पथिक अभय अथक पथ पर,
मन में घर डर यूं करना क्या!

दह दहक दीया, दिल बाती का
तिल जले तेल, सूख छाती का।
समा हो खुद, बुझने को भुक भुक,
परवाने पतंग का मरना क्या!

चल पथिक अभय अथक पथ पर
मन में घर डर यूं करना क्या!


जीवन चेतन जीव का खेल
प्रकृति से पुरुष का मेल।
भसम भूत ये पञ्च तत्व में,
सजना क्या, सँवरना क्या!

चल पथिक अभय अथक पथ पर,
मन में घर डर यूँ करना क्या!


1 comment:

  1. NITU THAKUR's profile photo
    NITU THAKUR
    Owner
    +1
    आप तो शब्दों के जादूगर है
    शब्दों को ख़ूबसूरती से सजाकर
    एक सुन्दर संदेश देती आप की रचना लाजवाब ही होती है।

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    41w
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +1
    +NITU THAKUR अत्यंत आभार आपका!!!
    41w
    Meena Gulyani's profile photo
    Meena Gulyani
    +1
    bahut sunder
    41w
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    Vishwa Mohan
    आभार!!!
    41w
    Meena Gulyani's profile photo
    Meena Gulyani
    +1
    welcome

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