बिरहन बिलखे, बेरी-बेरी,
बिखन, चिर संताप।
बुझी बाती आस की,
आँखिन अँधियारी छात।
कासे कहूँ, हिया की बात !
पलक अपलक, उलझे अलक,
दहक-दहक, दिन-रात।
सबद नीर, नयन बह निकले,
भये तरल, दोउ गात।
कासे कहूँ, हिया की बात !
पसीजे नहीं, पिया परदेसिया,
ना चिठिया, कोउ बात।
जोहत बाट, बैरन भई निंदिया,
रैन लगाये घात।
कासे कहूँ हिया की बात !
भोर-भिनसारे, कउआ उचरे,
छने-छने, मन भरमात।
जेठ दुपहरिया, आग लगाये,
चित चंचल, अचकात।
कासे कहूँ, हिया की बात !
गोतिया-गोतनी, गाभी मारे,
जियरा, जरी-जरी जात।
अंगिया ओद, भये अँसुअन से,
अँचरा में बरसात।
कासे कहूँ, हिया की बात !
धड़के छतिया, फड़के अँखियाँ,
एने-ओने, मन बउआत।
सिसके सेनुर, कलपे कंगना,
बहके, अहक अहिवात,
कासे कहूँ, हिया की बात !
चटक-चुनरिया, सजी-धजी मैं,
सुधि बिसरे, दिन-रात।
सिंहा-सिंगरा, गूँजे गगन में,
अब लायें, बलम बरिआत !
कासे कहूँ, हिया की बात !
(बेरी-बेरी = बार बार, बिखन = भीषण, हिया = ह्रदय, अलक = बाल, गात = गाल, रैन = रात, अचकात = अचंभित होना, गोतिया = कुल-परिवार के सदस्य, गोतनी = देवरानी-जेठानी, गाभी मारे = ताने कसे, ओद = गीला, सेनुर = सिंदूर, एने-ओने = इधर उधर, बउआत = भटकता, अहक =मन की तीव्र कामना, अहिवात = सुहागन, सिंहा = उत्तर भारत का फूंक कर बजाया जाने वाला एक वाद्य यंत्र, सिंगरा = असम में भैंस के सिंग का बना वाद्य यंत्र जो बिहू के श्रृंगारिक नृत्य में फूंक कर बजाया जाता है.)