ज़िन्दगी की कथा बांचते बाँचते, फिर! सो जाता हूँ। अकेले। भटकने को योनि दर योनि, अकेले। एकांत की तलाश में!
Thursday, 7 June 2018
कासे कहूँ, हिया की बात!
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पसीजे नहीं पिया परदेसिया
ReplyDeleteना चिठिया कोउ बात
जोहत बाट बैरन भई निंदिया
रैन लगाये घात
👌👌👌🙏🙏🙏
बहुत आभार!!!!
Deleteचटक-चुनरिया, सजी-धजी मैं,
ReplyDeleteसुधि बिसरे, दिन-रात।
सिंहा-सिंगरा, गूँजे गगन में,
अब लायें, बलम बरिआत !///
विरह की अनुपम गाथा!लयबद्धता और शब्द कौशल में बंधी रचना जितनी बार पढ़ो उतनी बार नई लगती है।हार्दिक शुभकामनाओं के साथ आपके सृजन को नमन करती हूँ 🙏🙏
जी, हार्दिक आभार!!!!
Deleteआप बहुत अच्छा लिखते हैं। बहुत शुभकामनाएँ आपको🙏
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार। आशीष बना रहे😄🙏🙏
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