Sunday, 10 March 2019

फद्गुदी


दौड़ रहा है सरपट सूरज
समेटने अपनी बिखरी रश्मियों को.

घुला रही हैं अपने नयन-नीर से,
नदियाँ अपने ही तीर को.

खेल रही हैं हारा-बाजी टहनियाँ
अपनी पत्तियों से ही.

फूंक मार रही हैं हवाएं,
जोर जोर से अपने ही शोर को.

जला रही है बाती,
तिल-तिल कर अपने ही तेल को.

दहाड़ रहा है सिंह सिहुर-सिहुर कर,
अपनी ही प्रतिध्वनि पर.

लील रही है धरोहर, धरती
काँप-काँपकर अपनी ही कोख की.

पेट सपाट-सा सांपिन ने,
फूला लिया है खाकर अपने ही संपोलो को.

चकरा रही है चील, लगाये टकटकी,
अपनी ही लाश पर.

सहमा-सिसका है साये में इंसान,
 आतंक के, अपने ही साये के.

और फुद्फुदा रही है फद्गुदी,
चोंच मारकर अपनी ही परछाहीं पर!

Monday, 4 March 2019

शिवरात्रि सुर संगीत सुनो

कल्प आदि का महाप्रलय था,
अंकुर बीज में अबतक लय था.
प्रकृति अचेत और पुरुष गुप्त था,
चेतन शक्ति निष्प्राण सुप्त था.
शक्ति हीन शिव सोया शव था,
दिग्दिगंत निःशब्द नीरव था.
चक्र चरम था आरोहण का,
परम शिव सिरजन ईक्षण का.
'प्रत्यभिज्ञा', पूर्ण विदित सुनो,
शिवरात्री सुर संगीत सुनो.


अब निर्गुण संग सगुण होगा,
भक्ति में ज्ञान निपुण होगा.
रस ज्ञान में भक्ति घोलेगी,
नव सूत्र सृजन का खोलेगी.
अनहद में आहद कूजेगा,
त्रिक ताल तुरीय गूंजेगा.
अद्वैत में द्वैत यूँ निखरेगा,
स्पंद-सार स्वर बिखरेगा.
कल्प-काल-क्रिया की रीत सुनो,
शिवरात्री सुर संगीत सुनो.



अब सुन लो डमरू शंकर की,
ये है बारात प्रलयंकर की.
शिव ने शक्ति समेटी है,
अपनी जटा लपेटी है.
चित और आनंद मिलेंगे,
कैलाश में किसलय खिलेंगे.
सृष्टि का होगा स्पंदन,
कल्प नया, करो अभिनन्दन.
नव चेतन,  चिन्मय गीत सुनो,
शिवरात्रि सुर संगीत सुनो.