Saturday, 21 March 2020

कविता का फूल (विश्व कविता दिवस पर)

जंगम जलधि जड़वत-सा हो,
स्थावर-सा सो जाता हो।
ललना-सी लहरें जातीं खो,
तब चाँद अकुलाता हैं।

 शीत तमस-सा तंद्रिल तन,
रजनीश का मुरझाया मन।
देख चाँद का भोलापन,
फिर सूरज दौड़ा आता है।

धरती को भी होती धुक-धुक,
उठती हिया में लहरों की हुक।
अभिसार से आर्द्र हो कंचुक,
सौरमंडल शरमाता है।

बाजे नभ में प्रेम पखावज,
ढके चाँद को धरती सूरज।
भाटायें ज्वारों-सी सज-धज,
पाणि-ग्रहण हो जाता है।

उछले उर्मि सागर उर पर,
राग पहाड़ी ज्यों संतूर पर।
प्रीत पूनम मद नूर नूर तर,
चाँद धवल हो जाता है।

प्राकृत-भाव भी अक्षर-से,
चेतन-पुरुष को भर-भर के।
सृष्टि-सुर-सप्तक रच-रच के,
कविता का फूल खिलाता है।