यह नीड़ नहीं, दिल मेरा है
आँगन में तेरे उकेरा है।
अवनि से अम्बर के घट में,
पलक झपकते उड़ती चट में।
गहराता तम का जब घेरा,
खिंचे बांधे मोह बसेरा।
चिड़ा-चिड़ी की चिर चूँ-चूँ,
ये, सप्तपदी का फेरा है।
यह नीड़ नहीं, दिल मेरा है,
आँगन में तेरे उकेरा है।
जंगल झाड़ी वन-वन घूम-घूम,
खर, पात और टहनी चुन चुम।
चोंच-सी सुई में गूँथ गूँथ कर,
आर्द्र उर ऊष्मा से तर कर।
पलकों में पलते सपनों का,
मेरा रैन बसेरा है।
यह नीड़ नहीं, दिल मेरा है,
आंगन में तेरे उकेरा है।
माँ चिड़िया का दाना चुगना,
लौट घोंसले को फिर आना।
चूजे के फैले चोंचों में
डलता है जीवन का दाना।
कल जो चूजा आज वह चिड़िया,
नीड़ का गिरना और फिर छाना।
जीव-जगत की तिजारत यह,
चंद दिनों का डेरा है।
तेरे नीम के गाछ पर,
छा छतरी-सा मेरा घोंसला।
दिल की आकृति में सजती,
मेरी नीड़-निर्माण-कला।
मोहक महक मेरी चहकों ने,
मन-आँगन तेरा घेरा है।
यह नीड़ नहीं, दिल मेरा है
आँगन में तेरे उकेरा है।
बस पल थोड़ा बीत जाने दे,
खुशियों के गीत चंद गाने दे।
क्षणभंगुर ही सही, हमें बस!
बन बसंत तू छा जाने दे।
फिर कालग्रास बन जाएंगे,
आँगन छोड़ यह जाएंगे।
आज बसंत, फिर कल पतझड़,
यही! यहाँ का फेरा है।
यह नीड़ नहीं, दिल मेरा है,
आँगन में तेरे उकेरा है।
बहुत ही खूबसूरत और मखमली कविता है, शब्दों को प्रकृति का नेहाशीष प्राप्त है। खूब बधाईयां।
ReplyDeleteआपका आशीष हमें सदैव ऊर्जा प्रदान करता है। अत्यंत आभार!!!!
Deleteतिनका तिनका चुन चुनकर, बड़ी ही एकाग्रता और श्रम के साथ बनाए गए ये पक्षियों के घोंसले मानव को जो संदेश देते हैं वह भगवद्गीता के सार से कम नहीं। इतनी कलात्मकता और कारीगरी को झोंक कर बनाए गए नीड़ के लिए आपने बड़े सुंदर सार्थक शब्दों का चयन किया है -
ReplyDeleteयह नीड़ नहीं, दिल मेरा है
आंगन में तेरे उकेरा है।
और उस सारी कलात्मकता और कारीगरी का उद्देश्य क्या?
चूजे के फैले चोंचों में
डलता है जीवन का दाना।
कल जो चूजा आज वह चिड़िया,
नीड़ का गिरना और फिर छाना।
ना कोई मोह, ना शोक। घोंसले का एकमात्र उद्देश्य नवजीवन की चहक से गूँजना, अगली पीढ़ी की सुरक्षा और फिर अगले मौसम में पंछी का फिर उसी उत्साह के साथ नए घरौंदे का निर्माण।
जीव-जगत की तिजारत यह,
चंद दिनों का डेरा है।
मानव ना जाने कब समझेगा यह ?
मन को छू लेनेवाली अविस्मरणीय रचना। सादर।
आपके इस अनुपम अनुग्रह का अप्रतिम आभार। आपकी विदुषी दृष्टि हामारे रचनाकार रूप को आकृति देती है।
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (28 -5-21) को "शब्दों की पतवार थाम लहरों से लड़ता जाऊँगा" ( चर्चा - 4079) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा
ReplyDeleteबस पल थोड़ा बीत जाने दे,
खुशियों के गीत चंद गाने दे।
क्षणभंगुर ही सही, हमें बस!
बन बसंत तू छा जाने दे।
फिर कालग्रास बन जाएंगे,
आँगन छोड़ यह जाएंगे।
आज बसंत, फिर कल पतझड़,
यही! यहाँ का फेरा है। पक्षियों के नीड़ का उदाहरण लेकर आपने मानव जीवन की सच्चाई को बहुत खूबसूरती से उद्धृत कर दिया,एक उत्कृष्ट रचना के लिए आपको बहुत बहुत बधाई ।
आपका आशीष हमें सदैव ऊर्जा प्रदान करता है। अत्यंत आभार!!!!
Deleteबस पल थोड़ा बीत जाने दे,
ReplyDeleteखुशियों के गीत चंद गाने दे।
क्षणभंगुर ही सही, हमें बस!
बन बसंत तू छा जाने दे।
फिर कालग्रास बन जाएंगे,
आँगन छोड़ यह जाएंगे।
आज बसंत, फिर कल पतझड़,
यही! यहाँ का फेरा है।
जीवन का यही तो सार,जो हमें पक्षियों से ही सीखना चाहिए "क्षणभंगुर ही सही" मगर जो जीवन मिला है उसे तो जीभर जीना चाहिए।
अद्भुत सृजन ,सादर नमन आपको
आप यूँ ही अपना अनुग्रह बनाए रखें।आपका आशीष हमें सदैव ऊर्जा प्रदान करता है। अत्यंत आभार!!!!
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २८ मई २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteयह नीड़ नहीं, दिल मेरा है
Deleteआंगन में तेरे उकेरा है।///
चिड़िया के नीड़ के बहाने शाश्वत जीवन चक्र को इंगित करती रचना | अनुरागरत मन के प्रेमिल भाव रचना को नए आयाम दे रहे हैं |जो दर्शाता है एक नीड़ भी काव्य सृजन की अनूठी प्रेरणा हो सकता है |इस कविदृष्टि को नमन है | हार्दिक शुभकामनाएं और आभार |
आपका आशीष हमें सदैव ऊर्जा प्रदान करता है। अत्यंत आभार!!!!
Deleteचित्र प्रेरित कुछ पंक्तियां
ReplyDeleteकितना सुंदर कितना प्यारा
है ये नीड़ तुम्हारा चिड़िया ,
तिनका -तिनका गुंथा हुआ है
इसमें प्यार तुम्हारा चिड़िया |
पढ़ी कभी न विद्यालय में
अनथक खोयी बस अपनी लय में
धीरज , श्रम अलंकार तुम्हारे
ना डूबी कभी किसी संशय में
नीड़कला की माहिर तुम
हुनर ये जग में न्यारा चिड़िया
रंग सपनों में नित भर भरकर
सजाओं छोटा सा अपना ये घर
निर्जनता में स्पंदन भर गूंजे
आहलादित तेरा मधुर,करुण स्वर
उड़ता निर्मम समय का पाखी
ना आता लौट दुबारा चिड़िया |
🙏🙏
वाह! बहुत ही सुंदर काव्यात्मक टिप्पणी!!! आभार!!!!
DeleteMam, you have managed to string into verse, which I could barely manage in prose!
DeleteBeautiful !!
प्रिय रश्मि जी,मेरी छोटी सी रचना पर आत्मीय प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार ।चिड़िया का घोंसला मात्र एक कलात्मक नीड नहीं, अपितु एक सुखद दांपत्य जीवन का जीवंत प्रतीक है । पाखी जोड़ा कितने श्रम से अपनें प्रेमिल सपनों को साकार कर, सुखद गृहस्थी का स्वांग रच, नन्हे पाखी को उड़ान के लिए तैयार कर निर्लिप्त भाव से, नवजीवन की उड़ान के लिए गगन को सौंप देता है । सृष्टि का विस्मय भरा विराट दर्शन है ये। पुनः आभार और प्रणाम 🙏🙏
Deleteउव्वाहहह..
ReplyDeleteबेहतरीन..
सादर
बहुत सुंदर।👌🌻
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!
Deleteसबको जीवन में एक न एक दिन इसी तरह के दर्द से गुजरना पड़ता है। जीवन यही है सारगर्भित रचना।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!
Delete👌👌वाह!बहुत ही बेहतरीन 👌👌👌
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!
Deleteजी, अत्यंत आभार!!!
ReplyDeleteचिड़िया के जीवन के माध्यम से मनुष्य जीवन चक्र को इंगित करते हुए सुंदर काव्य सृजन किया है ।
ReplyDeleteखूबसूरत रचना ।
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteअहा, अत्यन्त सुन्दर पंक्तियाँ।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!
Deleteवाह! प्रकृति का श्रृंगार के साथ सुंदर समागम और अंत आध्यात्म को मुड़ता सृजन ।
ReplyDeleteश्रेष्ठ सृजन।
जी, अत्यंत आभार!!!!
Deleteबस पल थोड़ा बीत जाने दे,
ReplyDeleteखुशियों के गीत चंद गाने दे।
क्षणभंगुर ही सही, हमें बस!
बन बसंत तू छा जाने दे।
फिर कालग्रास बन जाएंगे,
आँगन छोड़ यह जाएंगे।
आज बसंत, फिर कल पतझड़,
यही! यहाँ का फेरा है।
वाह बेहतरीन रचना आदरणीय।
जी, अत्यंत आभार।
Deleteमाँ चिड़िया का दाना चुगना,
ReplyDeleteलौट घोंसले को फिर आना।
चूजे के फैले चोंचों में
डलता है जीवन का दाना।
कल जो चूजा आज वह चिड़िया,
नीड़ का गिरना और फिर छाना।
जीव-जगत की तिजारत यह,
चंद दिनों का डेरा है।
इस चंद दिनों के डेरे को ही बनाते सजाते कब पतझड़ आ जाता है पता ही नहीं चलता...
फिर कालग्रास बन जाएंगे,
आँगन छोड़ यह जाएंगे।
आज बसंत, फिर कल पतझड़,
यही! यहाँ का फेरा है।
सम्पूर्ण जीवन का सार एक चिड़िया और उसके नीड़ निर्माण के खूबसूरत कला कौशल से...
अद्भुत एवं लाजवाब।
🙏🙏🙏🙏
जी, आपके आशीष सदैव हमें प्रेरणा देते हैं। अत्यंत आभार!
DeleteWhen I clicked this picture, I was merely chronicling the activities of a little non descript bird who decided to make its nest in my backyard. I was fascinated by the effort put in. Bits of straw, dried twigs, blades of grass were all woven with dexterity to give the nest a shape. The silken fibres from the nearby semal tree gave it a fuzzy coat and the scarlet flowers of the bottle brush decorated the doorway.
ReplyDeleteIt was a test of patience for me as the whole process took about a week!
In the avian kingdom , it is the male of the species who builds the nest. At the time of the click, the bird is sitting pretty in his nest(You can enlarge and see), ready to woo his mate and show off his handiwork (or should it be beakiwork??!! :)
Mr Vishwamohan, you picked up from where I left off! Your poem is a serenade by this bird, who awaits his mate in the hope that the nest will become a home. You have even notched higher by presenting it as a metaphor for life itself.
Captivating poetry!
Once again a photograph from you has instigated and inspired me to compose a poem....a poem emanating from the heart of the fabricator of this beautiful nest.
DeleteI somehow missed out mentioning the background of poem earlier.Apologies and thank you.
बहुत बहुत सुंदर अत्यंत सराहनीय
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!!
Deleteदिल ही है ये ... और जो काम दिल से हो, महनत से हो अपने लिए हो उसमें दिल का होना जरूरी है ... सुन्दर गहरे भाव ...
ReplyDeleteबस पल थोड़ा बीत जाने दे,
ReplyDeleteखुशियों के गीत चंद गाने दे।
क्षणभंगुर ही सही, हमें बस!
बन बसंत तू छा जाने दे।
फिर कालग्रास बन जाएंगे,
आँगन छोड़ यह जाएंगे।
आज बसंत, फिर कल पतझड़,
यही! यहाँ का फेरा है।
...बहुत ही सुन्दर रचना।।।।।
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteप्रकृति और इसके अनंत काल से चलते आ रहे इसके कालचक्र का अहसास होता है मुझे आपकी इस सुसज्जित रचना से! सच में बहुत खूबसूरत लिखा है आपने!!
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का।
Deleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteअपने काव्य-जाल में तुमने हमको फाँस लिया हे कवि जी !
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteअप्रतिम रचना नमन आपकी लेखनी को 🙏
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!
Deletehttps://drive.google.com/file/d/1_pYiV4qYxgk_H03VWWoSa6gvmdT20riu/view?usp=sharing
ReplyDeleteI found this poem melodic, and have attempted to compose and sing an abridged version. Hope you and others like it.
वाह! बहुत सुंदर!!! जी, अत्यंत आभार आपका!
Delete