सृष्टि, स्थिति
और प्रलय है।
जय में क्षय है,
क्षय में जय है।
कालरात्रि की
काली कोख है।
सभी मौन, पर
समय शोख है।
क्षितिज से छलका
भौचक्क! भोर है।
मौन को मथता
मचा रोर है।
शोर नहीं,
यह सन्नाटा है।
ज्वार अंदर,
बाहर भाटा है।
कल, आज, कल
यूँ घूमता है।
विरह मिलन के,
संग झूमता है।
शांत शर्वरी,
वाचाल दिवस है।
काल चक्र में,
सभी विवश हैं।
जो आगत है,
वही विगत है।
सृष्टि का बस,
यही एक सत है।