Tuesday, 15 August 2023

मृच्छकटिकम


 देखो मिट्टी गाड़ी कैसे,

मेरे पीछे नाचे।

देह देही की यही दशा है,

यही संदेश यह बांचे।


सब सोचें मैं इसे नचाऊं,

किंतु नहीं यह सच है।

सच में ये तो मुझे नचाए,

यही बड़ा अचरज है।


श्रम सारा तो मेरा इसमें,

फिर कैसे यह नाचे!

रौरव शोर घोल मेरी गति में,

मेरी ऊर्जा  जांचे।


चकरघिन्नी सा नाचता पहिया,

मेरी गति को नापे।

हर चक्कर पर चक्का चर-पर,

चर-पर राग अलापे।


मैं भी दौडूं सरपट उतना,

जितना यह चिल्लाए।

कठपुतली सा नचा- नचा के,

बुड़बक हमें बनाए।


हर प्राणी की यही गति है,

मृच्छ कटिकम में अटका।

ता- ता- थैया करता थकता, 

पर भ्रम में रहता टटका।