Tuesday, 15 August 2023

मृच्छकटिकम


 देखो मिट्टी गाड़ी कैसे,

मेरे पीछे नाचे।

देह देही की यही दशा है,

यही संदेश यह बांचे।


सब सोचें मैं इसे नचाऊं,

किंतु नहीं यह सच है।

सच में ये तो मुझे नचाए,

यही बड़ा अचरज है।


श्रम सारा तो मेरा इसमें,

फिर कैसे यह नाचे!

रौरव शोर घोल मेरी गति में,

मेरी ऊर्जा  जांचे।


चकरघिन्नी सा नाचता पहिया,

मेरी गति को नापे।

हर चक्कर पर चक्का चर-पर,

चर-पर राग अलापे।


मैं भी दौडूं सरपट उतना,

जितना यह चिल्लाए।

कठपुतली सा नचा- नचा के,

बुड़बक हमें बनाए।


हर प्राणी की यही गति है,

मृच्छ कटिकम में अटका।

ता- ता- थैया करता थकता, 

पर भ्रम में रहता टटका।












18 comments:

  1. वाह सर.. बहुत सुंदर🌻❤️
    स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

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    1. शुभकामनाओं सहित ढेर सारा आभार🙏🙏🙏

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  2. बहुत खूबसूरत

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 17 अगस्त 2023 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 17 अगस्त 2023 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  5. सुंदर रचना। विचार करने पर बाध्य करती है।
    "उसने भर के चाबी भेजी,
    कभी गवाया, कभी नचाया,
    सोच बता तू, कौन खिलौना?
    या अब भी रहा भरमाया?!"

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    1. बहुत सुंदर। अत्यंत आभार।

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  6. सुंदर सृजन, माटी की गाड़ी में भी वही चेतना छिपी है, अंततः जड़-चेतन सभी का आधार वह एक ही है

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    1. बिलकुल सही। बहुत आभार।

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  7. बहुत ही प्यारा वीडियो और उस पर ये सुन्दर बाल रचना आदरणीय विश्वमोहन जी! किसी समय में मिट्टी की ये गाड़ी बचपन को खूब दौड़ाती थी! पर आज अनगिन डिजिटल खिलौनों से खेलते इस माटी की गाड़ी को भूल ही गए! यूँ इसे बाल रचना कहना शायद तर्कसंगत नहीं क्योंकि इस बाल खिलौने के माध्यम से एक वृहद जीवन दर्शन उद्घाटित हुआ है! बाल मन अपनी मस्ती में मस्त हो इस दर्शन से नितांत अनभिज्ञ रहता है! एक भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आपको!

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  8. अच्छा लगा,आज डिजिटल कथित क्रांति के भयावह दौर में , कथित संभ्रांत वर्ग का एक बालक माटी की गाड़ी को ठेलते हुए बचपन का असली आनंद लूट रहा है! काश! हर एक बचपन यूँ ही आजाद रह इस अनमोल समय को इसी मस्ती और उमंग से जी पाता ,पर डिजिटल तकनीकऔर
    किताबों से भरे भारीभरकम स्कूल बस्तो ने बचपन की आँखों के सपने बदरंग कर दिए हैं!

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    1. जी, बिलकुल सही। बहुत आभार।

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