Sunday, 20 October 2024

डल झील


प्रत्यूषा का प्रसव काल है,

जल में थोड़ी हलचल है।

चतुर्दशी का चाँद  गगन में,

डल के तल में कोलाहल है।


यह झील सती का सरोवर,

शंकर समीप पर्वत ऊपर।

नीचे जल झलमल-झलमल

सोहै  दूधिया चंद्रशेखर।


कर तल से करतल किल्लोलें,

यह राजतरंगिणी कल्हण की।

चंपू की चंचल चालों में,

छपछप करती यह अल्हड़-सी।


काष्ठ कुटीर के कोटर से,

दो नयन निहारे अपलक से।

लहर तरल पर तिरे चाँदनी,

झील हिलमिल छलके-झलके।


देवोद्भव से त्राण-प्राप्ति,

कश्यप की तप-धार है।

वाराह अवतार-कथा यह,

सतीसर कश्यप-मार है।