प्रत्यूषा का प्रसव काल है,
जल में थोड़ी हलचल है।
चतुर्दशी का चाँद गगन में,
डल के तल में कोलाहल है।
यह झील सती का सरोवर,
शंकर समीप पर्वत ऊपर।
नीचे जल झलमल-झलमल
सोहै दूधिया चंद्रशेखर।
कर तल से करतल किल्लोलें,
यह राजतरंगिणी कल्हण की।
चंपू की चंचल चालों में,
छपछप करती यह अल्हड़-सी।
काष्ठ कुटीर के कोटर से,
दो नयन निहारे अपलक से।
वायु लहर पर तिरे चाँदनी,
झील हिलमिल छलके-झलके।
देवोद्भव से त्राण-प्राप्ति,
कश्यप की तप-धार है।
वाराह अवतार-कथा यह,
सतीसर कश्यप-मार है।
पुराणों की कई कथाओं का समन्वय है इस रचना में
ReplyDeleteहर शब्द के अर्थ में एक कथा
पवित्र डल झील पर इतनी सार्थक कविता मात्र आपकी लेखनी से ही सम्भव है नमन एवं साधुवाद🙏🙏👌👌
जी, हार्दिक आभार आपके सुंदर शब्दों का🙏🏼
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" मंगलवार 22 अक्टूबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteजी, हार्दिक आभार🙏🏼
Deleteवाह
ReplyDeleteजी, हार्दिक आभार🙏🏼
Delete