Sunday, 20 October 2024

डल झील


प्रत्यूषा का प्रसव काल है,

जल में थोड़ी हलचल है।

चतुर्दशी का चाँद  गगन में,

डल के तल में कोलाहल है।


यह झील सती का सरोवर,

शंकर समीप पर्वत ऊपर।

नीचे जल झलमल-झलमल

सोहै  दूधिया चंद्रशेखर।


कर तल से करतल किल्लोलें,

यह राजतरंगिणी कल्हण की।

चंपू की चंचल चालों में,

छपछप करती यह अल्हड़-सी।


काष्ठ कुटीर के कोटर से,

दो नयन निहारे अपलक से।

लहर तरल पर तिरे चाँदनी,

झील हिलमिल छलके-झलके।


देवोद्भव से त्राण-प्राप्ति,

कश्यप की तप-धार है।

वाराह अवतार-कथा यह,

सतीसर कश्यप-मार है।

12 comments:

  1. पुराणों की कई कथाओं का समन्वय है इस रचना में
    हर शब्द के अर्थ में एक कथा
    पवित्र डल झील पर इतनी सार्थक कविता मात्र आपकी लेखनी से ही सम्भव है नमन एवं साधुवाद🙏🙏👌👌

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    1. जी, हार्दिक आभार आपके सुंदर शब्दों का🙏🏼

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" मंगलवार 22 अक्टूबर 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  3. डल झील का बहुत सुंदर चित्रण

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  4. अद्भुत मनभावन और सराहनीय सृजन आ0

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  5. Very Nice Post....
    Welcome to my blog for new post....

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