Wednesday, 11 April 2018

हटा ! ये 'आरक्षण'!!!


हैं तो सहोदर ही हम!
खिलाया तूझे बना फूल,
और मैं मनोनित शूल!
गड़ता रहा बरबस मैं
विलास वीथिका में.
बुर्जुआ बाजीगरी,
अभिजात्य वैभव वर्ण!
मैं सर्वहारा विवर्ण,
कुलहीन, सूतपुत्र कर्ण!

कुलीन,गांडीवधारी, तू
सखा-गिरधारी,
द्रोण शिष्य,तुणीर भव्य!
लांछित,शापित, शोषित
सहता समाज का दंश
अकेला, मैं एकलव्य!

पातक पराक्रमी,
कुटील रणकौशल,
प्रवंचक, पाखंडी,
ले चला छल
कवच किरीट कुंडल!
दिखा दिया
अंगूठा!
'धरमराज' को
काटकर मेरा!

दबाते सताते
सदी-दर-सदी,
कब्र में कर्ज की,
छापकर वे कटे
'अंगूठे'
मेरे ही!

हारते रहे हम
ज़िंदगी का
हर जुआ.
जुतकर, हलों में,
बन बैल बंधुआ.
चकराता रहा

चक्का काल का,
चढ़ते उतरते तू सूरज संग.
आसमान की ड्योढ़ी पर
लमराकर मेरी परछाहीं
काली, अछूत!
बरक्श बर्बरता तुम्हारी
मेरे बेबस अक्स,
समेटने को
झोपडी में.......

और! निहारती रक्तिम आँखे,
'लज्जा' उस फूस की
होती 'अवधूत'
तुम्हारे मनहूस महलों में!
वेदना अस्फुट,
सिसकती,कराहती
कंठों में, काठ मारे!
..........................
..................    !!!

सौगात संविधान की
या सियासत का व्यापार!
पहना गया है,
रस्से की दाग वाली
घुटती घेंट में मेरे,
'आरक्षण' का हीरक हार!

फूली फली हैं फसले
वोटों की खूब!
मौसम में पकते ही
काट लेते सत्ता के सौदागर
हंसुए से 'आरक्षण' के!
गर्दन फिर मेरा ही दुखता!

"उग आये है ऊपर से,
वंश 'संपोलो' के
अब बस्ती में
हमारी ही!
माहिर हैं,
खाने में
अपने ही अन्डो को!
डसकर
आरक्षण के 'फन' में!"

कराहता इतिहास,
बरगलाता वर्तमान,
भरमाता भविष्य!
आओ, बैठे,
करें हिसाब-किताब
भूल चुक , लेनी देनी!

ला, मेरा 'अंगूठा'
लौटा वो 'कुंडल'
चल फेंके वो कुंठा
वो 'मंडल' 'कमंडल'!
कर बुलंद हम खुदी को,
रोकेंगे भक्षण.
खुद का खुद ही हम
कर लेंगे रक्षण,
चल घटा ! ये 'आरक्षण'.

हटा ! ये 'आरक्षण'!!!   



अंगूठा-- समानता , कुंडल--- आत्मसम्मान एवं सामाजिक समरसता


2 comments:

  1. Shubha Mehta's profile photo
    Shubha Mehta
    +1
    वाह!!बहुत खूब!!
    Translate
    43w
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +Shubha Mehta आभार!!!
    43w
    Indira Gupta's profile photo
    Indira Gupta
    +1
    वाह वाह क्या खूब फटकार भरी रचना
    ....चल हटा ये आरक्षण ...👌👌👌👌👌👌
    ये फटकार यदि हो बुलंद तो कवि भाव सब सार्थक हो
    रक्षण आरक्षण सब विलुप्त हो कर्म भाव बस शाश्वत हो !
    Translate
    43w
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    हार्दिक आभार!!!

    ReplyDelete
  2. NITU THAKUR: बहुत आकर्षक ...अच्छी रचना
    Vishwa Mohan: +NITU THAKUR आभार!

    ReplyDelete