जीव-जगत-जंजाल भंवर में,
छल-प्रपंच, माया गह्वर में.
आसक्ति की शर-शय्या पर,
दिशा-भ्रम में भटकू मैं दर-दर.
हर लौं, मन की पीड़ा
गुरुजी, तू भृंगी, मैं कीड़ा!
ईश-ज्योति दे दे जीवन में,
’सोअहं’ भर दे तू मन में.
निरहंकार, चैतन्य बना दे,
शिशु अबोध मैं, तू अपना ले.
पिता, आ खेलें ज्ञान की क्रीड़ा,
गुरुजी, तू भृंगी, मैं कीड़ा!
छवि तेरी नयनों में भासे,
‘सर्वस्व’ चरणों पर अर्पित.
ज्ञान-सुधा की निर्झरिणी में,
दिव्य पुनीत, मैं अधम-पतित.
मैनें आज उठायो बीड़ा,
गुरुजी, तू भृंगी, मैं कीड़ा!
सृष्टि, पालन और संहार,
ज्ञान-जनक, तू सबके पार.
ले गोद में मुझे चला चल,
बहे मोक्ष की गंगा कलकल.
गये जहां कबीर और मीरा,
गुरुजी, तू भृंगी, मैं कीड़ा!
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ReplyDeleteVishwa Mohan
+1
आभार एवं शुक्रिया!!!
Jul 9, 2017
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Kusum Kothari
+1
विनय और स्वयं को नाकिंचित मान गुरु चरणों मे स्वयं का समर्पण।
अति सुन्दर।
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Jul 10, 2017
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Vishwa Mohan
आभार एवं शुक्रिया , कुसुमजी!
एक समर्पित शिष्य का अत्यंत विनम्र आग्रह श्री गुरुदेव के श्री चरणों में ! इन स्नेहिल उद्गारों में विनीत शिष्य की करुण प्रार्थना समाहित है , जो गुरुदेब की कृपा को पाकर मोक्ष प्राप्त करने की तीव्र उत्कंठा रखता है, क्योंकि भृंगी रूपी आत्मज्ञानी सतगुरु ही शब्द गुंजन से एक कीड़े को अपने तुल्य भृंगी बनाने की क्षमता रखता है, यही तत्वदर्शी गुरु की पहचान है | सुंदर और भावपूर्ण प्रतीकात्मक सृजन !!!!!! सादर
ReplyDeleteजी, बहुत आभार आपका।
Deleteआभार।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना सोमवार 5 सितम्बर ,2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteबहुत सुन्दर सार्थक रचना। शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!
Deleteआहा,अति सुंदर सृजन।
ReplyDeleteअद्भुत।
प्रणाम
सादर।
जी, अत्यंत आभार।
Deleteबहुत उम्दा रचना
ReplyDeleteसाधुवाद
जी, बहुत आभार।
Deleteईश-ज्योति दे दे जीवन में,
ReplyDelete’सोअहं’ भर दे तू मन में.
निरहंकार, चैतन्य बना दे,
शिशु अबोध मैं, तू अपना ले.
पिता, आ खेलें ज्ञान की क्रीड़ा,
गुरुजी, तू भृंगी, मैं कीड़ा!
वाह!!!
अद्भुत शब्दसौष्ठव!!
बहुत ही उत्कृष्ट एवं लाजवाब सृजन
शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ।
जी, बहुत आभार।
Deleteछवि तेरी नयनों में भासे,
ReplyDelete‘सर्वस्व’ चरणों पर अर्पित.
ज्ञान-सुधा की निर्झरिणी में,
दिव्य पुनीत, मैं अधम-पतित.///
आत्मज्ञानी गुरु के प्रति
एक गुणी शिष्य के अविरल कृतज्ञ भाव से भरी अपनी तरह की आप भावपूर्ण अभिव्यक्ति! शिक्षक दिवस की बधाई और शुभकामनाएं 🙏🙏
जी, बहुत आभार!!!!
Deleteसृष्टि, पालन और संहार,
Deleteज्ञान-जनक, तू सबके पार.
ले गोद में मुझे चला चल,
बहे मोक्ष की गंगा कलकल.
गये जहां कबीर और मीरा,
गुरुजी, तू भृंगी, मैं कीड़ा!
सुंदर शब्दावली से सजी नवीनता से युक्त अप्रतिम रचना आदरणीय आपकी लेखनी को नमन,आपको शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
जी, अत्यंत आभार।
Deleteगुरु को सर्वस्व मान, समर्पित भावों वाली सुंदर रचना।
ReplyDeleteशिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
जी, अत्यंत आभार।
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