Tuesday, 22 September 2015

प्लेटलेट्स की पतवार फंसी 'डेंगी' में।

प्लेटलेट्स की पतवार फंसी 'डेंगी' में।
उलझती अटकती साँसे,
फकफकाहट।
'अविनाश' मासूमियत,
मद्धिम सी आँखों में झूलता
बेबस बाप की अकबकाहट!
आरोग्य चौखट से दुत्कारी गयी
लाचार माँ ,नम नयन,
कातर कोख
हदस ! थरथराहट !!
सिकुड़े 'आकाश' से
क्षुद्र 'मैक्स' तक
मज़दूरों के पसीने और
'खैराती टैक्स' पर
एम्बुलेंस की आपाधापी।
पर, निरीह की ज़िंदगी
जोड़ने को कुछ पल,
'उजली कोट' ओढ़े
कोई भी 'काली रूह'
नहीं काँपी!
सिक्को के खनकते
बटखरे में,इंसानी जिंदगी,
तौलते सुश्रुत-सूत।
धन्वन्तरी के धनिक अनुयायी।
चिकित्सा की दुकान
पर बैठे व्यवसायी।
कुत्सित-चित्त
धिक्-धिक् ,पतित।
संवेदनहीन,कुविचारी,
श्वेताम्बर शिक्षाधारी।
तुमसे श्वेत तो वो ' एडिस'
काल-दंश-धारी!
चाहे हो राजा या रंक
बिना भेद के मारता डंक।
जिससे भी सटता,
मुखशुद्धि करता
सबमें जहर भरता।
बाकी जिम्मा तेरी
'कजरी' आत्मा का,
कोई जीता, कोई मरता।

3 comments:

  1. Pushpendra Dwivedi: वाह अति सुन्दर
    Vishwa Mohan: +Pushpendra Dwivedi
    आभार!
    Pushpendra Dwivedi: +Vishwa Mohan सुस्वागतम

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  2. NITU THAKUR:
    Waah......Bahot khoob
    Jandar,shandar,Damdar Rachna
    Vishwa Mohan: आभार!

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  3. आपके अप्रतिम स्नेहाशीष का हृदयतल से आभार।

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