(१)
अल्हड़, नवयौवना नदी
फेंक दी गयी! या कूदी।
पिता पहाड़ की गोदी से,
सरकती, सरपट कलकल
छलछल, छैला समंदर
की ओर।
पथ पर पसरा पथार,
खाती, पचाती,
घुलाती मिलाती।
ऊसर अंचल थाती
आँचल फैलाती।
कूल संकुल मूल,
नमी का बीज बोती
संगी साथी सबको धोती।
स्वयं पापो की गठरी ढोती!
(२)
गाँव- गँवई,शहर नगर
ज़िंदा-मुर्दा, लाश,ज़हर
टूटे फूटे गन्दे नालों
का काला पानी,
सल्फर सायनाइड की बिरयानी।
सबकुछ चबाती चीखती।
प्रदुषण के नए भेद सीखती,
हहकारती, कुलबुलाती,
पसरती, सूखती
जवानी लुटाती!
कभी नहरें पी जाती
फिर निगोड़ा सूरज
सोखने लगता।
दौड़ती, गिरती पड़ती
अपने समंदर से मिलती।
(३)
समंदर!
उसे बाँहों में भरता।
लोट लोट मरता।
लहरों से सजाता।
सांय सांय की शहनाई बजाता
अधरों को अघाता
और रग रग पीता।
फिर दुत्कार देता
वापस ‘ बैक-वाटर’ में।
जैसे, राम की सीता!
वेदना से सिहरती
बेजान, परित्यक्ता
आँसुओं में धोती, पतिता।
सरिता, यादों को
अपने पहाड़ से पिता की!
अल्हड़, नवयौवना नदी
फेंक दी गयी! या कूदी।
पिता पहाड़ की गोदी से,
सरकती, सरपट कलकल
छलछल, छैला समंदर
की ओर।
पथ पर पसरा पथार,
खाती, पचाती,
घुलाती मिलाती।
ऊसर अंचल थाती
आँचल फैलाती।
कूल संकुल मूल,
नमी का बीज बोती
संगी साथी सबको धोती।
स्वयं पापो की गठरी ढोती!
(२)
गाँव- गँवई,शहर नगर
ज़िंदा-मुर्दा, लाश,ज़हर
टूटे फूटे गन्दे नालों
का काला पानी,
सल्फर सायनाइड की बिरयानी।
सबकुछ चबाती चीखती।
प्रदुषण के नए भेद सीखती,
हहकारती, कुलबुलाती,
पसरती, सूखती
जवानी लुटाती!
कभी नहरें पी जाती
फिर निगोड़ा सूरज
सोखने लगता।
दौड़ती, गिरती पड़ती
अपने समंदर से मिलती।
(३)
समंदर!
उसे बाँहों में भरता।
लोट लोट मरता।
लहरों से सजाता।
सांय सांय की शहनाई बजाता
अधरों को अघाता
और रग रग पीता।
फिर दुत्कार देता
वापस ‘ बैक-वाटर’ में।
जैसे, राम की सीता!
वेदना से सिहरती
बेजान, परित्यक्ता
आँसुओं में धोती, पतिता।
सरिता, यादों को
अपने पहाड़ से पिता की!