Saturday, 19 November 2016

" गली में दंगे हो सकते हैं "

" गली में दंगे हो सकते हैं " भारत के न्याय निकाय के मुखिया का यह वक्तव्य न्याय के मूल दर्शन (जुरिस्प्रुदेंस) के अनुकुल नहीं प्रतीत होता है. एक गतिशील और स्वस्थ लोकतंत्र में संस्थाओं को अपनी मर्यादाओं के अन्तर्गत अपने दायित्व का निर्वाह करना अपेक्षित होता है.न्याय तंत्र संभावनाओं पर अपना निर्णय नहीं सुनाता. 'हेतुहेतुमदभुत' का न्याय दर्शन में निषेध है.
'दंगाइयों को यह आभास दिलाना की यह अवसर उनकी क्षमता के अनुकूल है' कहीं से भी और किसी भी प्रकार एक स्वस्थ, सुसंकृत एवं सभ्य समाज में किसी भी व्यक्ति को शोभा नहीं देता . ऐसी गैर जिम्मेदार बातों से वह व्यक्ति जाने अनजाने स्वयं उस संस्था की अवमानना कर बैठता है जिसकी गरिमा की रक्षा करना उसका प्रथम, अंतिम एवं पवित्रतम कर्तव्य होता है.
समाज में कार्यपालिका को उसकी त्रुटियों का बोध कराना, उसके कुकृत्यों को अपनी कड़ी फटकार सुनाना, असंवैधानिक कारनामों को रद्द करना और प्रसिद्द समाज शास्त्री मौन्टेस्क्यु के 'शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत ' के आलोक में अपनी स्वतंत्र सत्ता को कायम रखना एक संविधान चालित लोकतंत्र में न्यायपालिका का पवित्र एकाधिकार है.भारत की न्यायपालिका का चरित्र इस मामले में कुछेक प्रसंगो को छोड़कर त्रुटिहीन, अनुकरणीय एवं अन्य देशों के लिए इर्ष्य है.यहीं कारण है कि भारत की जनता की उसमे अपार आस्था और अमिट विश्वास है और यहीं आस्था और विश्वास न्याय शास्त्र में वर्णित न्यायशास्त्री केल्सन का वह 'ग्रंड्नौर्म' है जिससे भारत की न्यायपालिका अपनी शक्ति ग्रहण करती है.
संस्थाओं का निर्माण मूल्यों पर होता है और उन मूल्यों के संवर्धन, संरक्षण और अनुरक्षण उन्हें ही करना होता है. अतः इन संस्थाओं को लोकतंत्र में सजीव और स्वस्थ बनाए रखना सबकी जिम्मेदारी है. ऐसे में व्यक्तिगत तौर पर मैं भारत के वर्त्तमान महामहिम राष्ट्रपतिजी के आचरण से काफी प्रभावित हूँ.
आशा है मैंने संविधान प्रदत्त अपने विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अतिक्रमण नही किया है, यदि भूल वश कही चुक गया होऊं तो क्षमा प्रार्थी.

7 comments:

  1. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete

  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २३ दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, अत्यंत आभार आपके इस आशीष का।

      Delete
  3. सुंदर विचार और सुंदर अभिव्यक्ति।सराहनीय

    ReplyDelete
  4. सारगर्भित , चिंतनपरक , सराहनीय लेख हमेशा की तरह। सादर 🙏

    ReplyDelete
  5. " संस्थाओं को लोकतंत्र में सजीव और स्वस्थ बनाए रखना सबकी जिम्मेदारी है." बिलकुल सत्य वचन ,सादर नमन

    ReplyDelete