अनहद ‘नाद’
ॐकार, टंकार,
‘बिंदु’-विस्फोट,
विशाल विस्फार।
स्मित उषा
प्रचंड मार्तण्ड,
पीयूष प्रत्युषा,
प्रसव ब्रह्माण्ड।
आकाशगंगा
मन्दाकिनी,
ग्रह-उपग्रह
तारक-चंद्रयामिनी।
सत्व-रजस-तमस
महत मानस व्यापार,
त्रिगुणी अहंकार,
अनंत अपार।
ज्ञान-कर्म-इंद्रिय
पंच-भूत-मात्रा सार,
अपरा-परा
चैतन्य अपारावार।
निस्सीम गगन
प्रकम्पित पवन,
दहकी अगिन
क्षिति जलमगन।
अहर्निशं
अज अविनाश,
शाश्वत, सनातन
सृजन इतिहास।
जीव जगत
भेद अथाह,
अविरल अनवरत
काल प्रवाह।
वेद पुराण
व्यास कथाकार,
बन्दे दिवाकर
सिरजे संसार।
Shubha Mehta: वाह!!आपकी लेखनी को मेरा वंदन 🙏
ReplyDeleteVishwa Mohan: और आपकी सारस्वत मधुर वाणी को मेरा सादर स्वर।
Vishwa Mohan: सादर नमन।
Kusum Kothari: ब्रह्मांड के विस्तार और गतिविधियों का नाना रूप आलोकिक वर्णन।
ReplyDeleteदुर्गम शब्दावली।
शुभ दिवस।
कृपा सिरजे का अर्थ बताऐं।
Vishwa Mohan: आभार! सिरजना - उत्पन्न करना, रचना करना , to create
Kusum Kothari: जी आभार सिरजन तो पता है सिरजे शायद सिरजन का अपभ्रंस है समझ नही पाई पुनः आभार।
NITU THAKUR: बेहद दिलकश। शानदार। लाज़वाब
ReplyDeleteKusum Kothari: वाह!!! अद्भुत।