थी अर्थनीति जब भरमाई,
ली कौटिल्य ने अंगड़ाई ।
पञ्च शतक सह सहस्त्र एक
अब रहे खेत, लकुटिया टेक।
जहां राजनीति का कीड़ा है,
बस वहीं भयंकर पीड़ा है ।
जनता खुश,खड़ी कतारों में,
मायूसी मरघट सी, मक्कारो में ।
वो काले बाजार के चीते थे
काले धन में दंभी जीते थे।
धन कुबेर छल बलबूते वे,
भर लब लबना लहू पीते थे।
मची हाहाकर उन महलो में,
लग गए दहले उन नहलों पे।
हैं तिलमिलाए वो चोटों से,
जल अगन मगन है नोटों से।
भारत भाल भारतेंदु भाई,
दुरजन देखि हाल न जाइ।
जय भारत, जय भाग्य विधाता,
जनगण मनधन खुल गया खाता।
तुग़लक़! बोले तो कोई शाह नादिर!
कोई 'आह नाज़िर'! कोई ' वाह नाज़ीर '!
आह नाज़िर! और बाह नाज़ीर !!
ली कौटिल्य ने अंगड़ाई ।
पञ्च शतक सह सहस्त्र एक
अब रहे खेत, लकुटिया टेक।
जहां राजनीति का कीड़ा है,
बस वहीं भयंकर पीड़ा है ।
जनता खुश,खड़ी कतारों में,
मायूसी मरघट सी, मक्कारो में ।
वो काले बाजार के चीते थे
काले धन में दंभी जीते थे।
धन कुबेर छल बलबूते वे,
भर लब लबना लहू पीते थे।
मची हाहाकर उन महलो में,
लग गए दहले उन नहलों पे।
हैं तिलमिलाए वो चोटों से,
जल अगन मगन है नोटों से।
भारत भाल भारतेंदु भाई,
दुरजन देखि हाल न जाइ।
जय भारत, जय भाग्य विधाता,
जनगण मनधन खुल गया खाता।
तुग़लक़! बोले तो कोई शाह नादिर!
कोई 'आह नाज़िर'! कोई ' वाह नाज़ीर '!
आह नाज़िर! और बाह नाज़ीर !!
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ReplyDeleteKusum Kothari
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बहुत सुंदर।
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Vishwa Mohan
शुक्रिया!
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Indira Gupta
+1
सटीक ! .....👍👍👍👍👍👍
नीति राजनीति की
बड़ी अजब सी बात
नीति बिन राजनीति का
अब तो बना स्वभाव !
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13w
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Vishwa Mohan
वाह! बहुत खूब! अत्यंत आभार आपका!!!
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 24 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!
Deleteराजनीति पर लिखी रचनाएँ कम समझ आती है।
ReplyDeleteआपकी रचना का शब्द विन्यास और अनुप्रास का प्रयोग अत्यंत सराहनीय है।
तात्कालिक नोटबंदी के घटनाक्रम पर आधारित आपकी रचना सराहनीय है।
प्रणाम
सादर।
जी, अत्यंत आभार!!! ऐसे आपको आता सब कुछ है। :)
Deleteराजनीति पर आपकी ये रचना गंभीर प्रश्न कर रही है ।
ReplyDeleteकभी कभी कुछ अच्छा करने की ख्वाहिश में परिणाम पर ध्यान नहीं रहता और बाकी तो लोग भ्रम भी बहुत फैलाते हैं । बस हर बार परेशान होता है तो आम आदमी ।
जय भारत, जय भाग्य विधाता,
जनगण मनधन खुल गया खाता।
जनधन खाते का कैसे दुरुपयोग होगा सोचा भी न होगा ।
असल में हम भारतीयों की खासियत है कि कानून बाद में बनता है उसके तोड़ हम पहले निकाल लेते हैं ।
बड़ी मारक रचना ।000
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteजहां राजनीति का कीड़ा है,
ReplyDeleteबस वहीं भयंकर पीड़ा है ।
बिल्कुल सटीक... और ये कीड़ा अब सभी जगह फैल चुका...
सही कहा आ.संगीता जी ने कानून बाद में बनता है और उसके तोड़ पहले निकल जाते हैं...
तब भी अब भी और शायद हमेशा ही हालातों पर फिप बैठती लाजवाब कृति।
वाह!क्या बात है 👌शानदार ।
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