अधरों के सम्पुट क्या खोलूं ,
मूक कंठों से अब क्या बोलूं.
भावों की उच्छल जलधि में,
आंसू से दृग पट तो धो लूँ .
अँखियन
सखी छैल छवि बसाऊं,
पुलकित
तन भुजबन्ध कसाऊं.
प्रिया
प्रीत सुर उर उकसाऊं,
आज
जो जोगन गीत वो गाऊं.
विरह चन्द्र जो
घुल घुल घुलता,
गगन प्रेम पूनम
पय धुलता.
बन घन घूँघट मुख
पट छाऊँ,
आज
जो जोगन गीत वो गाऊं.
बनू जुगनू
जागूं जगमग कर,
रासूं राका संग सुहाग भर.
राग झूमर
सोहर झुमकाऊँ,
आज
जो जोगन गीत वो गाऊं.
प्रेम
सघन वन पायल रुन झुन,
धुन
मुरली मोहन की तू सुन।
बाँसुरिया
पर तान चढ़ाऊँ,
आज
जो जोगन गीत वो गाऊं!
जग जड़ स्थूल स्थावर में,
सूक्ष्म चेतन जंगम को जगाऊँ.
गुंजू
अनहद नाद पुरुष बन,
आज
जो जोगन गीत वो गाऊं.