मन की
वेदना सर्वदा नयनों का नीर बन ही नहीं ढलकती, प्रत्युत अपने चतुर्दिक तरंगायित
होने वाली वेदना की उन प्रतिगामी स्वरलहरियों को भी अपने में समेटकर सृजन के शब्दों में सजती है और कागज़ पर जिंदगी के बेहतरीन
अक्सों में उभर आती है. भाई संदीप सिंह की
'अनन्या' ने इसका अकूत अहसास दिलाया. छठी
मैया की विदाई उषा के अंजोर के उन्मेष से होती है. पारण के
अगले दिन ही मुझे जमशेदपुर जाना था. छोटी पुत्री, वीथिका, ने शाम का रांची का टिकट भी करा दिया था. इसी बीच अप्रत्याशित निमंत्रण मिला कि आई आई टी रुड़की के हमारे
सहपाठी मित्र संदीप सिंह के उपन्यास 'अनन्या' का लोकार्पण शाम के तीन बजे अशोक रोड
के वाई डब्लू सी ए सभागार में 'स्टोरी मिरर' प्रकाशन के सौजन्य से होना था. इस मौके पर ढेर सारे पुराने मित्र भी जमा हो रहे थे. ऐसा अवसर मेरे लिए हमेशा उतेजना
पूर्ण होता है.
हम
लोकार्पण स्थल पर पहुंचे . कार्यक्रम प्रारम्भ हो चुका था. अब मै ये बता दूँ कि
संदीप सिंह हमारे बैच के आर्किटेक्चर के अत्यंत प्रतिभाशाली छात्र थे. पढाई पूरी
करने के पश्चात वह एक उदीयमान वास्तुविद बनने की राह पर निकल पड़े थे. किन्तु, काल की क्रूरता को कुछ और ही मंजूर था.
दुर्भाग्य से मधुमेह की बीमारी ने उनके नेत्रों की रोशनी छीन ली. दोनों आँखों से
पूर्ण अशक्त संदीप जीवन का दाव हारते हारते प्रतीत होने लगे थे. तब मै दिल्ली में
ही पदस्थापित था. मेरे सिविल इंजीनियरी के सहपाठी मित्र मनोज जैन ( जो स्वयं कुछ दिनों बाद अल्प वय में ही सदा के लिए हमारा साथ छोड़ कर चले
गए) ने जिस दिन मुझे ये बात बतायी थी और संदीप से टेलीफोन पर मेरी बात भी कराई थी,
मेरा मन मलीन और अंतस करुणा से कराह उठा था. मै और मनोज आगे के कई दिनों तक संदीप
के पुनर्वास से सम्बंधित योजनाये बनाते रहे थे. समय सरकता जा रहा था. मै पटना आ
गया. मनोज परम धाम को चले गए . उनके महा प्रस्थान से चन्द घंटो पहले उनसे फोन से
बात हुई थी. आई एल बी एस के बेड से ही लीवर सिरोसिस से लड़ते मनोज ने खुद फोन लगा
दिया था . दोनों मित्र अपने सांसारिक अभिनय पात्र को बखूबी खेल रहे थे. मै उन्हें
झूठा दिलासा दिला रहा था और वे एक सुस्पष्ट निर्भ्रांत भविष्य का दर्शन दे रहे थे.
अगले दिन पता चला था कि 'पंखुड़ी के पापा' अपनी डाली से टूट चुके थे....सदा के
लिए!....
उसके बाद
संदीप से मेरा संपर्क बिलकुल टूट गया. अबकी बार दिल्ली में छठी मैया मानो जाते
जाते संदीप से मेरा संपर्क सूत्र फिर जोड़ गयी थी . विमान पकड़ने की आपा धापी में मै
लोकार्पण समारोह में ज्यादा देर नहीं टिक सका. जमशेदपुर से वापस पटना लौटने पर
संदीप से मैंने विस्तार में बात की और जीवन समर में नित नित घात प्रतिघातों से दो
दो हाथ करने की उनकी अदम्य संकल्प शक्ति का आख्यान सुना. हम यह जानकर मन मसोस कर
रह गए कि हमारे पटना प्रवास के अनंतर ही वो भी दो साल अपने भाई के साथ पटना रहे थे
किन्तु जानकारी के अभाव में हमारी आँखे कभी चार नहीं हो पायी. अब आगे इसकी
पुनरावृति न हो, का भरोसा दिया गया.
लोकार्पण
के अवसर पर संदीप के भावुक भाषण की स्वर लहरियां मेरे कर्ण पटल को निरंतर झंकृत कर
रही थी. ज़िंदगी की जद्दो जहद से जूझते इस दृष्टि बन्ध परन्तु जीवन की दिव्य दृष्टि
से लबालब दिव्यांग पुरुष ने कैसे आशाओं के तिनके तिनके को जोड़ा और जीवन समर में
अजेय योद्धा की तरह अपने को पुनर्वासित किया. उनकी आपबीती आख्यान का हर शब्द
प्रेरणा और उर्जा का समंदर हिलोरता था. ज़िन्दगी के ऐसे उदास प्रहर में अवसाद का
प्रहार और समाज की निःस्वाद निरंकुश मान्यताओं की निर्मम मार मनोवैज्ञानिक
निःशक्तता की ऐसी मंझधार में छोड़ जाते हैं कि पतवार की पकड़ ढीली पड़ जाती है और बवंडर
का अन्धेरा छा जाता है. निराशा के ऐसे गहन तमिस्त्र में संदीप ने जिस आत्म बल से
आशा के सूर्योदय का सूत्रपात किया वह जीवन के दर्शन का एक अप्रतिम महा काव्य है.
नवीन तकनीक के माध्यम से दृष्टिबंधता की अवस्था में कंप्यूटर का कुशल प्रयोग
उन्होंने सीखा और निकल पड़े जीवन के एक नए साहित्य की रचना करने. आर्किटेक्चर में
शोध प्रबंधों की सर्जना के साथ साथ उनके अन्दर का साहित्यकार जीवित हो उठा और अपने
दिल की धुक धुकियों को शब्दों में समेटकर रच डाला 'अनन्या'! उन्ही के शब्दों में
:-
"
अनन्या कहानी है एक विकलांग युवक विस्तार भारद्वाज की. उसके जीवन के बदलते हुए
मौसमों की. अनन्या कहानी है एक मासूम और चुलबुली लड़की अनन्या की जो सूर्य की पहली
किरण की तरह दूसरों के जीवन में छाया अन्धेरा दूर कर देती है. अनन्या कहानी है हमारे
बदलते नजरिये की, मन में भरी कुंठाओं और कड़वाहट की, रिश्तो के ताने बाने की और
प्रेम के उस मीठास की जो हमारे आसपास बिखरी होती है, मगर जिससे हम अक्सर अनजान ही
रह जाते हैं. अनन्या कहानी है समाज में विकलांगों के स्थान की , समाज और उनके मध्य
अर्थपूर्ण संवाद की आवश्यकता की , क्योंकि जहां यह सत्य है कि विकलांगता के प्रति
समाज को अपना दकियानूसी रवैया बदलने की जरुरत है वहीँ यह भी उतना ही सच है कि
स्वयं विकलांगो को भी अपने दृष्टिकोण को अधिक व्यापक बनाने और अपनी नकारात्मकता से
बाहर निकलने की उतनी ही आवश्यकता है . अनन्या कहानी है टूटे हुए सपनों की चुभन की
तो दूसरी तरफ हौसलों की उड़ान की. अनन्या कहानी है उस एहसास की, जो है तो इंसान
खुदा है और नहीं है तो धूल का बस एक जर्रा!"
संदीप,
नमन आपके जज्बे को, नमन आपकी अदम्य संकल्प शक्ति को, नमन आपके संघर्ष यज्ञ को, नमन
आपकी अन्तस्थली से प्रवाहित जीवन के संजीवन साहित्य को और समर्पित आपको मेरी ये
शब्द सरिता -
'अर्जुन'
संज्ञाशून्य न होना
कुरुक्षेत्र
की धरती पर
किंचित
घुटने नहीं टेकना
जीवन की
सुखी परती पर
सकने भर
जम कर तुम लड़ना
चाहे हो
किसी की जीत
अपने दम
पर ताल ठोकना
गाना
हरदम विजय का गीत !
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ReplyDeleteIndira Gupta
+1
अदम्य साहस और निश्चय भरा लेखन ....हृदय की सहृदयता और सँकल्प का दोहन ...
अति उत्तम ....🙏
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Nov 12, 2017
अमित जैन 'मौलिक''s profile photo
अमित जैन 'मौलिक'
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+1
बहुत सुंदर। बहुत प्रेरक। wahh
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Nov 12, 2017
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Kusum Kothari
+1
संदीप प्रज्वलित दीपक और अनन्या अंत हीन, अनंत या अतुलनीय।
संघर्ष के विरुद्ध सफलता की ज्योत की जलाने वाले वीर की अतुलनीय सच्ची कहानी।
सुंदर और प्रेरणा दायक।
सर्वोच्च भाषा कौशल के साथ।
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Nov 12, 2017
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Vishwa Mohan
+Indira Gupta
आभार!!!
Nov 12, 2017
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Vishwa Mohan
+अमित जैन 'मौलिक'
आभार!!!
Nov 12, 2017
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Vishwa Mohan
+Kusum Kothari
आभार!!!
NITU THAKUR: very nice
ReplyDeleteVishwa Mohan: शुक्रिया!!!