Tuesday, 25 December 2018

सुन लो रूह की


दिल भी दिल भर,
दहक दहक कर
ना बुझता है,
ना जलता है.

भावों की भीषण ऊष्मा में,
मीता, मत्सर मन गलता है.

फिर न धुक धुक
हो ये धड़कन
और ना,
संकुचन, स्पंदन.

खो जाने दो, इन्हें शून्य में.
हो न हास और कोई क्रंदन.

शून्य शून्य मिल
महाशून्य हो
शाश्वत,
सन्नाटे का बंधन!

सब सूना इस शून्य शकट में
क्या किलकारी, क्या कोई क्रंदन.

मत डुबो,
इस भ्रम भंवरी में,
मन, माया की
मृग तृष्णा है.

दृश्य-मरीचिका! मिथ्या सब कुछ,
कर्षण ज्यों कृष्ण और कृष्णा हैं.

चलो अनंत
पथिक पथ बन तुम!
बरबस बाट
जोहे बाबुल डेरे.

रुखसत हो, सुन लो रूह की,
तोड़ो भ्रम जाल, मितवा मेरे!

4 comments:

  1. Asha Yadav's profile photo
    Asha Yadav
    +1
    बहुत सुन्दर रचना भैया।
    🌸🕉🌸
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    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    Moderator
    आभार।
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    Srishti Tripathi's profile photo
    Srishti Tripathi
    Owner
    +2
    बेहतरीन रचना👌👌

    मत डुबो,

    इस भ्रम भंवरी में,
    मन, माया की

    मृग तृष्णा है.

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    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    Moderator
    आभार।
    4w
    Gaurav Pandey's profile photo
    Gaurav Pandey
    +1
    सुन्दर रचना..
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    4w
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    Moderator
    +1
    +Gaurav Pandey आभार।

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  2. Meena Gulyani: sunder
    Vishwa Mohan: +Meena Gulyani अत्यंत आभार।

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  3. Ravindra Bhardvaj: बहुत खूब.... ....आदरणीय।
    Vishwa Mohan: आभार।

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