Saturday, 8 December 2018

पुरखों का इतिहास

बिछुड़ गया हूं
खुद से।
तभी से,
जब डाला गया था,
इस झुंड में।
चरने को,
विचरने को,
धंसने को,
फंसने को,
रोने को,
हंसने को।

डाले जाते ही
निकल गई थी,
मेरी मर्मांतक चीख!
छा गई थी,
खुशियां।
झुण्ड में।
और झुंड ने मनाया था
उल्लास,
मेरे आगमन का!
(बिछुड़ने
की तैयारी में!)

मुझसे
अरसो पहले भी
काफी लोग
बिछुड़ चुके है
पूर्वज बनकर।
जा के लटक गए हैं
आसमान में नक्षत्रों संग।
आने को हर साल।
अपने पक्ष का
तर्पण पाने
और पानी पीने!

कुछ तैयारी में है
अग्रज वृंद,
बनने को तारे।
फिर बारी हमारी,
और अनुज गणों की।
मिलेंगे खुद से, बनकर
मातम पुरसी पुरित पुरखे
बिछुड़कर झुंड से।
तब मेरी चीख पर,
उलटा होगा
झुंड के उल्लास का!


अर्थात!
मेरे उल्लास पर
झुण्ड की चीख।
मेरी चीख से झुंड की चीख
के बीच पसरा है
झुण्ड के उल्लास से
मेरे उल्लास के
बीच का भ्रम पाश।
यहीं तो टंगा है आकाश में
बनकर
पुरखों का इतिहास!

2 comments:

  1. Meena Gulyani's profile photo
    Meena Gulyani
    +1
    Beautiful alankar ka chhand ka smayojan aapne kiya hai .Ati sunder
    6w
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +Meena Gulyani अत्यंत आभार आपका!!!
    6w
    Ritu Asooja Rishikesh's profile photo
    Ritu Asooja Rishikesh
    +1
    बहुत खूब
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    6w
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    अत्यंत आभार!!!
    6w
    Shubha Mehta's profile photo
    Shubha Mehta
    +1
    वाह!!!!

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  2. Renu's profile photo
    Renu
    +1

    आदरनीय विश्व मोहन जी -- जीवन के शाश्वत चक्र को इंगित कर लिखी गई रचना उस सत्य से साक्षात्कार कराती है जो हर इन्सान के जीवन में अटल है | हमारे जन्म के समय हमारे शिशु क्रन्दन स्वर से आह्लादित होने वाले , हमारे अपने एक दिन सितारों की दुनिया का हिस्सा बन पुरखे कहलाते हैं तो उनके जाने के शोक में डूबे हम ये भुला देते हैं एक दिन हम भी उसी नभ में नक्षत्र बन लटकने वाले हैं |ये भी एक दिवास्वप्न मात्र है, कि हम उनसे मिलेंगे और वे उल्लास से भर उठेंगे पर इसी भ्रम पाश की उहापोह में जीवन गुजर जाता है | हर कदम पर अपनी भूमिका निभाते हुए बीते पल से पलायन कर हम आगे बढ़ते जाते हैं | शैक्सपियर ने सही कहा है, ये दुनिया एक रंगमंच है जिस पर अपना अभिनय निभा रहे हैं | तो रचना पढ़कर मुझे कबीर जी अमर पंक्तियाँ याद आती हैं जो रचना के विषय से मिलती जुलती हैं -
    कबीरा जब हम जग में आये -जग हंसे हम रोये -
    ऐसी करनी कर चले - हम हंसे जग रोये !!
    सार्थक और अनूठी रचना के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनायें
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    8w
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +Renu
    आपके उत्साहवर्द्धन का आभार!!!

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