सिंधु की धारा में धुलता
'गरकौन' के गांव में।
था पलता एक नया 'याक'
उस चरवाहे की ठाँव में।
पलता ख्वाबों में अहर्निश,
उस चौपाये का ख्याल था।
सर्व समर्पित करने वाला,
वह 'ताशी नामोग्याल' था।
सुबह का निकला नित्य 'याक',
संध्या घर वापस आ जाता।
बुद्ध-शिष्य 'ताशी' तब उस पर,
करुणा बन कर छा जाता।
एक दिन 'याक' की पथ-दृष्टि,
पर्वत की खोह में भटक गयी।
इधर आया न देख शाम को,
'तासी' की सांसें अटक गई।
खोज 'याक' ही दम लेगा वह,
मन ही मन यह ठान गया।
खोह-खोह कंदर प्रस्तर का,
पर्वत मालाएं छान गया।
हिमालय के हिम-गह्वर में,
ताका कोना-कोना 'ताशी'।
दिख गए उसको घात लगाए,
छुपे बैठे कुछ परवासी।
पाक नाम नापाक मुल्क से,
घुसपैठी ये आये थे।
भारत माँ की मर्यादा में,
सेंध मारने आये थे।
सिंधु-सपूत 'ताशी' ने भी अब,
'याक' को अपने भुला दिया।
लेने लोहा इन छलियों से,
सेना अपनी बुला लिया।
वीर-बांकुड़े भारत माँ के,
का-पुरुषों पर कूद पड़े।
पट गयी धरती लाशों से,
थे बिखरे ज़ुल्मी मरे गड़े।
स्वयं काली ने खप्पर लेकर,
चामुंडा हुंकार किया।
रक्तबीजों को चाट चाटकर,
पाकिस्तान संहार किया।
'द्रास', 'बटालिक' बेंधा हमने
'तोलोलिंग' का पता लिया।
मारुत-नंदन 'नचिकेता' ने
यम का परिचय बता दिया।
पाकिस्तान को घेर-घेर कर,
जब जी भर भारत ने छेंका।
होश ठिकाने आये मूढ़ के,
घाट-घाट घुटने टेका।
करे नमन हम वीर-पुत्र को,
और सिंधु का जमजम पानी।
'पगला बाबा' की कुटिया से,
कारगिल की यहीं कहानी।
'पगला बाबा' की कुटिया -- कारगिल के 'बीकन' सैन्य-संगठन क्षेत्र में एक ऊपरी तौर पर मानसिक रूप से अर्द्धविक्षिप्त साधु बाबा अपनी कुटिया बनाकर रहते थे। कहते हैं कि कारगिल युद्ध के समय पाकिस्तान की ओर से दागे गए जो भी गोले उस कुटिया के आस-पास गिरते, वे फट ही नहीं पाते। युद्ध समाप्ति के बाद सेना ने उस क्षेत्र को उन जिंदा गोलों से साफ किया। बाद में बाबा की मृत्यु के बाद सेना ने उनके सम्मान में सुंदर मंदिर बनवाया जहाँ आज भी नित्य नियमित रूप से पूजा-अर्चना होती है।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (26-07-2019) को "करगिल विजय दिवस" (चर्चा अंक- 3408) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
जी, अत्यंत आभार आपका!
Deleteस्वार्थ से परे रखा .जज़्बातों की अनुभूति,दर्द को बहुत गहरे से कहा है।
ReplyDeleteअत्यंत सुन्दर सृजन !!
ReplyDeleteनमन वीरों को। बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteजी, आभार हृदयतल से!
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 26 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी, बहुत आभार आपका।
Deleteबहुत सुंदर लेखन
ReplyDeleteजी, बहुत आभार आपका।
Deleteआत्म मुग्ध करता कथा काव्य ,सारी जानकारीयां
ReplyDeleteसमेटे ,प्रवाह लिए,अप्रतिम सृजन।
जी, बहुत आभार आपके आशीष का।
Deleteसार्थक सृजन आदरणीय
ReplyDeleteआभार।
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteजी, आभार।
Deleteकारगिल का इतिहास और वीरों की शौर्य-गाथा का सुंंदर साहित्यिक काव्य-शिल्पात्मक वर्णन।
ReplyDeleteहमेशा की तरह सराहनीय सृजन आदरणीय।
कारगिल युद्ध की शौर्य-गाथा का लाजवाब काव्यात्मक शब्दचित्रण....।
ReplyDeleteवाह!!!!
जी, आभार। आपके सुंदर शब्द हमें सदैव प्रोत्साहित करते हैं।
Deleteकारगिल युद्ध के गुमनाम नायक 'ताशी नामोग्याल' से लेकर भारतीय सेना के जांबाज वीरों की शौर्य गाथा को बहुत ही सार्थकता से शब्दांकित किया है आपने | ताशी इस युद्ध के मसीहा सरीखे बन गये जिनके मातृभूमि के प्रति निर्भीक जज़्बे ने घटनाक्रम का परिदृश्य बदलने में अहन भूमिका अदा की | माँ भर्ती के रणबांकुरों को शत शत नमन और आपको सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनायें |
ReplyDeleteजी, बहुत आभार अपनी चिर परिचित शैली में अपनी समीक्षा में अर्थों को विस्तार देने हेतु। आपने सही कहा, अक्सर ऐसे नायक समय की धूल से ढक जाते हैं।
Deleteवाह!!! अद्भुत!!! अद्भुत!!! अद्भुत !!!
ReplyDeleteवीर जवानों के अदम्य साहस को प्रदर्शित करती रचना।
जी, बहुत आभार आपका।
Deleteशौर्यगाथा की काव्यात्मक शैली.. बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteजी, बहुत आभार आपका!!!
Deleteयुद्ध की शौर्य-गाथा का चित्रण....।
ReplyDeleteआज विजय दिवस के अवसर पर ये कविता पढ़ आंखे नम हुईं और सीना गर्वित हुआ !
ReplyDeleteमैं जहाँ रहती हूं, उसी कॉलोनी में वीर चक्र विजेता कैप्टन विजयंत थापर का भी घर है, जो कारगिल में 1999 में शहीद हुए थे।
आज के दिन उन सब वीरों को नमन और श्रद्धांजलि।
ताशी ग्वाले की वजह से भारतीय सेना सचेत हुई और घुसपैठियों से देश को मुक्त करा पाई । बहुत सुंदर विवेचन पूरे युद्ध का । जय हिंद ।।
ReplyDeleteजी, बहुत आभार आपका।
DeleteBeautifully penned ❣️
ReplyDeleteAn emotional tribute to all our bravehearts .
शत शत नमन 🙏
कारगिल में वीरता की नई मिसाल क़ायम करने वालों की सुन्दर जयगाथा.!
ReplyDeleteलेकिन हमको यह नहीं भूलना चाहिए कि हम 1999 में भी 1962 की तरह असावधान थे. दुश्मन हमारी चौकियों पर क़ब्ज़ा किये जा रहा था और इसकी ख़बर की महीनों के बाद हमको एक गरड़िए के ज़रिए मिल पाई थी.
जी, बहुत आभार आपका!!
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteजी, बहुत आभार आपका।
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteजी, बहुत आभार आपका।
Deleteएक अविस्मरणीय गाथा जो एक आम नागरिक के उत्तम कर्तव्यबोध का उद्दात भाव से प्रशस्ति गान है।कारगिल युद्ध के अमर बलिदानियों को विनम्र श्रद्धांजलि।मातृभूमि उनके सर्वस्व बलिदान की सदैव ऋणी रहेगी।🙏🙏
ReplyDeleteजी, बहुत आभार आपका।
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