Tuesday, 30 July 2019

सिऊंठे

मां!
कैसी समंदर हो तुम!
तुम्हारी कोख के ही केकड़े
नोच-नोच खा रहे है
तुम्हारी ही मछलियां।
काट डालो न
कोख में ही
इनके सिऊंठे!
जनने से पहले
इनको।
या फिर मत बनो
मां!




सिऊंठा - केंकड़े के दो निकले चिमटा नुमे दांत जिससे वह काटता या पकड़ता है, भोजपुरी, मैथिली, वज्जिका, अंगिका और मगही भाषा मे उसे सिऊंठा कहते हैं।

25 comments:

  1. विश्वमोहन भाई, बहुत सुंदर रचना। लेकिन किस माँ को पता होता हैं कि उसके द्वारा पैदा किए केकड़ों को सिऊंठे उग आएंगे? क्योंकि कोई भी माँ नहीं चाहती कि उसके बच्चे गलत राहों पर चल पड़े।

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    1. जी, सही कहा। यहीं तो वेदना है। कितना छलित होता है मातृत्व जब वह सोचने को विवश हो जाय कि बांझपन ही अच्छा इन केकड़ों को जनने से!
      अत्यंत आभार आपका।

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  2. सही कहा काट डालो माँ इनके सिउंठे...
    क्योंकि .....
    माँ है तू सृजन है तेरे हाथ में
    अब तेरे कर्तव्य और बढ़ गये
    बहुत लाजवाब रचना....

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    1. वाह! बहुत सुंदर। अत्यंत आभार आपका।

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  3. पेट का सिऊंठे ना भी काट सके क्यों कि नहीं पता कि पात्र कि कुपात्र तो जन्म देने के बाद नजर रखे और उतार दे गर्दन से सर जब कुपात्र लगे
    पुरुषों द्वारा रचित ऐसी रचना ज्यादा मर्मस्पर्शी होती है
    साधुवाद

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    1. एकदम सटीक. जी, अत्यंत आभार आपका!!

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  4. निशब्द!
    साथ सही काश...

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    1. जी, अत्यंत आभार आपका!!!!

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  5. सारगर्भित रचना।

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    1. जी, अत्यंत आभार आपका!!!

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  6. Waah! Maa ke prati is kadar ki rachna dekh kar maa ki yaad a gayi.

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  7. बहुत मर्मस्पर्शी, लेकिन काश माँ ऐसा कर पाती।

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    1. जी, अत्यंत आभार आपका।

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  8. एक पुकार माँ से माँ लिये ... पर वो भी तो माँ है ... कहाँ मानती है बच्चों के लिए ... कुछ भी ... मर्म को छूते हुए भाव ...

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    1. बहुत सुंदर प्रतिक्रिया। आभार।

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  9. हर माँ चाहती है ,कि उसकी संतान संस्कारी और समाज के लिए कल्याणकारी हो, पर वो माये अभागी होती हैं, जिन्हें अपने जीवन में ऐसा दिन देखने को मिलता है जब उसका मातृत्व शर्मशार होता है। सार्थक रचना।

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    1. सत्य वचन। अत्यंत आभार।

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  10. माँ है तू सृजन है तेरे हाथ में
    अब तेरे कर्तव्य और बढ़ गये
    बहुत लाजवाब रचना...

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    1. जी, बहुत बहुत आभार आपके आशीष का।

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  11. माँ है तू सृजन है तेरे हाथ में
    अब तेरे कर्तव्य और बढ़ गय......बेहतरीन रचना

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