मां!
कैसी समंदर हो तुम!
तुम्हारी कोख के ही केकड़े
नोच-नोच खा रहे है
तुम्हारी ही मछलियां।
काट डालो न
कोख में ही
इनके सिऊंठे!
जनने से पहले
इनको।
या फिर मत बनो
मां!
सिऊंठा - केंकड़े के दो निकले चिमटा नुमे दांत जिससे वह काटता या पकड़ता है, भोजपुरी, मैथिली, वज्जिका, अंगिका और मगही भाषा मे उसे सिऊंठा कहते हैं।
कैसी समंदर हो तुम!
तुम्हारी कोख के ही केकड़े
नोच-नोच खा रहे है
तुम्हारी ही मछलियां।
काट डालो न
कोख में ही
इनके सिऊंठे!
जनने से पहले
इनको।
या फिर मत बनो
मां!
सिऊंठा - केंकड़े के दो निकले चिमटा नुमे दांत जिससे वह काटता या पकड़ता है, भोजपुरी, मैथिली, वज्जिका, अंगिका और मगही भाषा मे उसे सिऊंठा कहते हैं।
वाह
ReplyDeleteजी, आभार।
Deleteसिऊंठे??
ReplyDeleteजी, धन्यवाद!
Deleteकेकड़े की चोंच!
Deleteविश्वमोहन भाई, बहुत सुंदर रचना। लेकिन किस माँ को पता होता हैं कि उसके द्वारा पैदा किए केकड़ों को सिऊंठे उग आएंगे? क्योंकि कोई भी माँ नहीं चाहती कि उसके बच्चे गलत राहों पर चल पड़े।
ReplyDeleteजी, सही कहा। यहीं तो वेदना है। कितना छलित होता है मातृत्व जब वह सोचने को विवश हो जाय कि बांझपन ही अच्छा इन केकड़ों को जनने से!
Deleteअत्यंत आभार आपका।
सही कहा काट डालो माँ इनके सिउंठे...
ReplyDeleteक्योंकि .....
माँ है तू सृजन है तेरे हाथ में
अब तेरे कर्तव्य और बढ़ गये
बहुत लाजवाब रचना....
वाह! बहुत सुंदर। अत्यंत आभार आपका।
Deleteपेट का सिऊंठे ना भी काट सके क्यों कि नहीं पता कि पात्र कि कुपात्र तो जन्म देने के बाद नजर रखे और उतार दे गर्दन से सर जब कुपात्र लगे
ReplyDeleteपुरुषों द्वारा रचित ऐसी रचना ज्यादा मर्मस्पर्शी होती है
साधुवाद
एकदम सटीक. जी, अत्यंत आभार आपका!!
Deleteनिशब्द!
ReplyDeleteसाथ सही काश...
जी, अत्यंत आभार आपका!!!!
Deleteसारगर्भित रचना।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपका!!!
DeleteWaah! Maa ke prati is kadar ki rachna dekh kar maa ki yaad a gayi.
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी, लेकिन काश माँ ऐसा कर पाती।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपका।
Deleteएक पुकार माँ से माँ लिये ... पर वो भी तो माँ है ... कहाँ मानती है बच्चों के लिए ... कुछ भी ... मर्म को छूते हुए भाव ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रतिक्रिया। आभार।
Deleteहर माँ चाहती है ,कि उसकी संतान संस्कारी और समाज के लिए कल्याणकारी हो, पर वो माये अभागी होती हैं, जिन्हें अपने जीवन में ऐसा दिन देखने को मिलता है जब उसका मातृत्व शर्मशार होता है। सार्थक रचना।
ReplyDeleteसत्य वचन। अत्यंत आभार।
Deleteमाँ है तू सृजन है तेरे हाथ में
ReplyDeleteअब तेरे कर्तव्य और बढ़ गये
बहुत लाजवाब रचना...
जी, बहुत बहुत आभार आपके आशीष का।
Deleteमाँ है तू सृजन है तेरे हाथ में
ReplyDeleteअब तेरे कर्तव्य और बढ़ गय......बेहतरीन रचना