Friday, 26 June 2020

वचनामृत

क्यों न उलझूँ
 बेवजह भला!
तुम्हारी डाँट से ,
तृप्ति जो मिलती है मुझे।
पता है, क्यों?
माँ दिखती है,
तुममें।
फटकारती पिताजी को।
और बुदबुदाने लगता है
मेरा बचपन,
धीरे से मेरे कानों में।
"ठीक ही तो कह रही है!
आखिर कितना कुछ
सह रही है।
पल पल ढह रही है
रह-रह, बह रही है।"
सुस्ताता बचपन
उसके आँचल में
सहसा सजीव हो उठता है।
और बुझाने को प्यास
उन यादों की।
मैं  चखने लगता हूँ
तुम्हारे  वचनामृत को !

Monday, 15 June 2020

क्लैव्य त्याज्य एकलव्य बनो तुम!



नियति ने इतना लाड़ दिया प्यार अपार, परिवार दिया। विधुर पिता ने भी तुम पर अपना जीवन निसार किया। माँ भी रह रह कर हरदम किस्मत में तेरी मुस्काई। सफलता की राहों में सरपट तृण भी तनिक न आड़े आयी। फिर भी न जाने कायर-से किस आहट से सिहर गए। तिनके-तिनके-से अंदर से टूट-टूट कर बिखर गए। पता है क्यों ! जीर्ण-शीर्ण और जर्जर-से तेरे सपने थे। नहीं किसी के गलबहियां तुम नहीं किसी के अपने थे। बस खुद को ही खोद खोद कर खुद को यूँ गँवाते थे। मृग-मरीचिका की माया में कोई अपना नहीं बनाते थे। तुम भी सीख लो दुनियावालों नहीं केवल तुम अपने हो। रिश्ते-नाते, अपने-दूजे प्राण-प्राण के सपने हो। 'मेरा-मेरा' रट ये छोड़ो यह 'मेरा' वह 'मेरा' है। ये मत भूलो तन-मन-धन और प्राण नहीं कुछ 'तेरा' है। क्लैव्य त्याज्य एकलव्य बनो तुम लड़ो समर में जीवन के। करो आहुति जीवन अपना वीरगति आभूषण-से।

Thursday, 4 June 2020

आर्त्तनाद (लघुकथा)

रात भर धरती गीली होती रही। आसमान बीच बीच में गरज उठता। वह पति की चिरौरी करती रही। बीमार माँ को देखने की हूक रह रह कर दामिनी बन काले आकाश को दमका देती। सूजी आँखों में सुबह का सूरज चमका। पति उसे भाई के घर के बाहर ही छोड़कर चला आया। घर में घुसते ही माँ के चरणों पर निढाल उसका पुक्का फट चुका था। वर्तमान की चौखट पर बैठा अतीत कब से भविष्य की बाट जोह रहा था। दो जोड़ी कातर निगाहें लाचारी के  धुँधलेपन में घुलती जा रही थी। सिसकियों का संवाद चलता रहा। दिन भर माँ को अगोरे रही।

पच्छिम लाल होकर अंधेरे में गुम हो गया था। अमावस का काजल धरती को लीपने लगा था। उपवास व्रत के अवसान का समय आ गया था।  बरगद के नीचे पतिव्रताओं का झुंड शिव-पार्वती को नहलाने लगा था। कोयल कौए के घोंसले से अपने बच्चे  को लेकर अपने घर के रास्ते निकल चुकी थी। कालिंदी अपने आर्त्तनाद का पीछा करती सरपट समुंदर में समाने भागी जा रही थी।