ज़िन्दगी की कथा बांचते बाँचते, फिर! सो जाता हूँ। अकेले। भटकने को योनि दर योनि, अकेले। एकांत की तलाश में!
एक दूसरे में समाने के जद्दोजहद में कितना कुछ बदल जाता है बहुत सुन्दर
अत्यंत गहन भाव लिए सुंदर भावाव्यक्ति।------आकांक्षाओं का नभ विशालतृप्ति-अतृप्ति मरीचिका जालरे मनुज! रक्तबीज कामनाएँ समझ सृष्टि का सृजन काल।----अति सारयुक्त सृजन आदरणीय विश्वमोहन जी।प्रणामसादर।
जी, अत्यंत आभार।
अदभुद
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 02-02-2021 को चर्चा – 4175 में दिया गया है।आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।धन्यवाद सहित दिलबागसिंह विर्क
Beauty in brevity.👌👌
अत्यंत सुन्दर सृजन ।
हर पंक्ति में सुंदर भाव । मानव मन के एहसासों की बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ।
प्रेम और प्रकृति के प्रभाव का सुन्दर सामंजस्य । चिर उत्तप्त विकलता.....
सच है भाव बढ़े तो इतने ही बढ़ें...सुन्दर सृजन।
बहुत सुन्दर सराहनीय। शब्द शब्द में एक पूर्ण भाव एक छिपी कविता । बहुत सुन्दर ।
गहरे भाव समेटे अद्भुत सृजन,सादर नमन आपको
अभिनव, अभिराम, अद्भुत!बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति।
अति सुन्दर लेखन
भावपूर्ण लेखन
सारगर्भित सुंदर सृजन।शुभकामनाएँ।
विरोधाभास भाव लिए अत्यंत गहन रचना ।
बहुत ही सारगर्भित विरोधाभास लिए गहन चिन्तनपरक सृजनवाह!!!
जी, अत्यंत आभार!!!
वाह!बहुत ही सुन्दर सृजन सर।सादर
लहर की प्यास बढ़ी,वह रेत को पी गयी। देह की ऊष्मा बढ़ी,सूरज को तपा दिया।रोचक भावाभिव्यक्ति 👌👌सादर🙏🙏
एक दूसरे में समाने के जद्दोजहद में कितना कुछ बदल जाता है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
अत्यंत गहन भाव लिए सुंदर भावाव्यक्ति।
ReplyDelete------
आकांक्षाओं का नभ विशाल
तृप्ति-अतृप्ति मरीचिका जाल
रे मनुज! रक्तबीज कामनाएँ
समझ सृष्टि का सृजन काल।
----
अति सारयुक्त सृजन आदरणीय विश्वमोहन जी।
प्रणाम
सादर।
जी, अत्यंत आभार।
Deleteअदभुद
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 02-02-2021 को चर्चा – 4175 में दिया गया है।
ReplyDeleteआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
जी, अत्यंत आभार।
DeleteBeauty in brevity.👌👌
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteअत्यंत सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteहर पंक्ति में सुंदर भाव । मानव मन के एहसासों की बहुत खूबसूरत
ReplyDeleteअभिव्यक्ति ।
जी, अत्यंत आभार।
Deleteप्रेम और प्रकृति के प्रभाव का सुन्दर सामंजस्य । चिर उत्तप्त विकलता.....
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteसच है भाव बढ़े तो इतने ही बढ़ें...
ReplyDeleteसुन्दर सृजन।
जी, अत्यंत आभार।
Deleteबहुत सुन्दर सराहनीय। शब्द शब्द में एक पूर्ण भाव एक छिपी कविता । बहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteगहरे भाव समेटे अद्भुत सृजन,सादर नमन आपको
ReplyDeleteअभिनव, अभिराम, अद्भुत!
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति।
जी, अत्यंत आभार।
Deleteअति सुन्दर लेखन
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteभावपूर्ण लेखन
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteसारगर्भित सुंदर सृजन।
ReplyDeleteशुभकामनाएँ।
जी, अत्यंत आभार।
Deleteविरोधाभास भाव लिए
ReplyDeleteअत्यंत गहन रचना ।
जी, अत्यंत आभार।
Deleteबहुत ही सारगर्भित विरोधाभास लिए गहन चिन्तनपरक सृजन
ReplyDeleteवाह!!!
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteवाह!बहुत ही सुन्दर सृजन सर।
ReplyDeleteसादर
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteलहर की प्यास बढ़ी,
ReplyDeleteवह रेत को पी गयी।
देह की ऊष्मा बढ़ी,
सूरज को तपा दिया।
रोचक भावाभिव्यक्ति 👌👌
सादर🙏🙏