इन क़दमों ने बहुत है सीखा,
चलना सँभल-सँभल के।
नापे दूरी कल, आज और,
कल के बीच पल-पल के।
समय ने तब ही जनम लिया,
जब पहला क़दम बढ़ाया!
हर क़दम की आहट में बस,
अपना प्रारब्ध पाया।
जितने क़दम, उतनी ही आहट,
था हर ताल नया-सा।
हर चाप निर्व्याज स्वर था,
करुणा और दया का।
तब धरा पर इंद्र स्वर्ग से,
वारीद संग आता था।
बन पर्जंय हरियाली-सा,
दिग-दिगंत छाता था।
छह ऋतुओं में दर्शन का,
षडकोण झलक जाता था।
चतुर्वेद में ज्ञान सोम का,
जाम छलक जाता था।
जीवन-तत्व संधान में जुटती,
गुरु-शिष्य की टोली।
गूँजे नाद अनहद आध्यात्म का,
उपनिषद की बोली।
सभ्यता के सोपानों पर,
क़दम चढ़ते जाते थे।
मूल्य संजोये संस्कार के,
गीत सदैव गाते थे।
मर्यादा के घुँघरू बांधे,
क़दम क्वणन पढ़ बढ़ते थे।
हर पग पर नैतिकता का,
मापदंड हम रचते थे।
चलते-चलते आज यहाँ तक,
हम आए हैं चल के।
किंतु, दंभ में महोत्कर्ष के,
छक गए ख़ुद को छल के।
अधिकार के मद को भरते,
हम कर्तव्य भूल जाते।
लोभ, मोह, तृष्णा, मत्सर,
बंधन सारे खुल जाते।
परपीड़न के पाप से प्रकृति,
प्रदूषित होती है।
दर-दर मारे-मारे फिरती,
मानवता रोती है।
अब भी न बाँधे पद में,
यदि मर्यादा की बेड़ी!
बज उठी समझो प्रांतर में
महाप्रलय रण-भेरी!
देखो मुँह चिढ़ाती हमको,
वक्र काल साढ़े साती!
फूँक-फूँक कर क़दम उठाना,
हो न ये आत्मघाती!
चलो, समय अब बाट जोहता,
आशा का दीप जलाए।
अब आगत के नए विहान में,
मिलकर क़दम बढ़ाएँ।
चलते-चलते आज यहाँ तक,
ReplyDeleteहम आए हैं चल के।
किंतु, दंभ में महोत्कर्ष के,
छक गए ख़ुद को छल के।
.. सत्यता तो यही है,कोई मानता है कोई नहीं मानता है..अत्यधिक पाने की उत्कंठा अक्सर स्वयं के लिए जी विनाशकारी होती है ।
चलो, समय अब बाट जोहता,
आशा का दीप जलाए।
अब आगत के नए विहान में,
मिलकर क़दम बढ़ाएँ।.. नए वर्ष में यही भाव लेकर हम सभी को चलना चाहिए । ... सकारात्मक संदेश देती रचना ।
जी, अत्यंत आभार!!! आपको सपरिवार नए वर्ष की शुभकामनाएँ!!!
Deleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति आदरणीय विश्वमोहन जी!
ReplyDeleteइंसानी कदमों का संतुलन ही सृष्टि को संतुलित रखता है। इनकी अस्थिरता संसार के लिए अशुभ और विनाशक है। प्रतीकात्मक चित्र के लिए कदमताल के बहाने समय का चरित्र दर्शाती और सार्थक प्रेरणा देती रचना के लिए हार्दिक बधाई। आगत वर्ष की ढेरों बधाइयां और शुभकामनाएं। नववर्ष सपरिवार मंगलमय हो यही कामना है।🙏🙏
जी, अत्यंत आभार!!! आपको सपरिवार नए वर्ष की शुभकामनाएँ!!!
Deleteचित्र प्रेरित पंक्तियां 🙏
ReplyDeleteमैंआज तू आगत कल,
जीवन का तू विराट सम्बल!
मेरा अनुभव तेरे सपने
एक नया संसार चले रचने!
चलें मिला कर कदमताल
निरख़ चहुर्दिश हो निहाल
समय भरता मानो आलाप
सुन सुरीली संयुक्त पदचाप !
🙏🙏🌹🌹🙏🙏
बहुत सुंदर!!!
DeleteSundar!
Deleteशुक्रिया रश्मि जी 🙏🙏🌷🌷
Deleteआभार!!!
ReplyDeleteYour poem is a distillation of the modern troubled times. The words of caution, followed by lighting the lamp of hope are a fitting end.
ReplyDeleteThe photograph seems to belong to you and your beloved grandson. My four lines inspired by the picture...
तुम्हारी उंगली पकड़,
मुझे कमज़ोर नहीं बनना !
चलूँगा मैं,तुम्हारे कदमों निशां पे,
तुम सही राह चलना !!
बहुत सुंदर! जी, अत्यंत आभार! आपको सपरिवार नए वर्ष की शुभकामनाएं!!!
Deleteबहुत बढ़िया रश्मि जी 👌👌 आगे कुछ भाव🙏-----
Deleteजीवन-पथ दुर्गम, दुष्कर,
तू बालक नादान अभी !
भलेबुरे की दुनिया में
कहां तुझे पहचान अभी!
कुछ दूर चलूं पकड़ उंगली,
फिर सौंपूं साराआकाश तुझे।
देखूं उड़ान तेरी जी भर,
पर रखूं मन के पास तुझे।
तुझ संग अपना बचपन जी लूं
है भीतर अरमान अभी !
सादर 🙏🙏🌷🌷
कुछ बोये, कुछ उग रहे,
Deleteकुछ कटकर खलिहान गए।
विधि का है शाश्वत विधान यह,
आकाश, काल अक्षय जय जय।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
The perspective of the older generation..well said Renu ji.
DeleteThanks dear Rashmi जी,
Deleteबहुत बहुत सुन्दर प्रशंसनीय रचना ।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!! आपको सपरिवार नए वर्ष की शुभकामनाएँ!!!
Deleteवाह!विश्वमोहन जी ,इतना उम्दा सृजन आपकी कलम ही कर सकती है । मानव जीवन का अथः से अब तक सुंदर विश्लेषण किया है ।
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ💐💐
वाह!विश्वमोहन जी ,इतना उम्दा सृजन आपकी कलम ही कर सकती है । मानव जीवन का अथः से अब तक सुंदर विश्लेषण किया है ।
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ💐💐
बहुत सुंदर रचना..
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!! आपको सपरिवार नए वर्ष की शुभकामनाएँ!!!
Deleteजी, आभार। जरूर आएंगे😀🙏
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सृजन
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार। नव वर्ष मंगलमय हो!
Deleteचलते-चलते आज यहाँ तक,
ReplyDeleteहम आए हैं चल के।
किंतु, दंभ में महोत्कर्ष के,
छक गए ख़ुद को छल के।
चलो, समय अब बाट जोहता,
आशा का दीप जलाए।
अब आगत के नए विहान में,
मिलकर क़दम बढ़ाएँ।
भले ही कहाँ से कहाँ पहुँच गए हम लेकिन एक आशा का दीप अब भी है जिसे मिलकर बुझने नहीं देना है
.. एक स्वप्न से जगाती है रचना
जी, अत्यंत आभार।
Deleteअब भी न बाँधे पद में,
ReplyDeleteयदि मर्यादा की बेड़ी!
बज उठी समझो प्रांतर में
महाप्रलय रण-भेरी!
बहुत ही बेहतरीन रचना।
जी, अत्यंत आभार।
Deleteअब भी न बाँधे पद में,
ReplyDeleteयदि मर्यादा की बेड़ी!
बज उठी समझो प्रांतर में
महाप्रलय रण-भेरी!
उज्जवल आगत के लिए अब मर्यादा की बेड़ी तो बाँधनी ही होगी
तभी कल्याण सम्भव है
हमेशा की तरह बहुत ही उत्कृष्ट एवं लाजवाब सृजन
वाह!!!
नववर्ष मंगलमय हो
वाह अप्रतिम सृजन
ReplyDeleteनववर्ष मंगलमय हो
जी, अत्यंत आभार!!! आपको सपरिवार नए वर्ष की शुभकामनाएँ!!!
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