आषाढ़ घटा घनघोर रही,
सरस सलिला धार बही।
तट भी आर्द्र सराबोर हुआ,
पवन-प्रणय का शोर हुआ।
तट अभिसार का ज्वार हुआ,
सरिता से पावस प्यार हुआ।
वह बार-बार टूट गिरता था,
अपनी सरिता में मिलता था।
सरिता होती मटमैली-सी,
पर उसकी अपनी शैली थी।
कभी तरु संग खिलती थी,
और पवन से मिलती थी।
वह तट से मुँहजोर बोली,
तट का दिल वह तोड़ चली।
छोड़ तुम्हें अब जाऊँगी,
नहीं कभी फिर आऊँगी।
तट प्रतिहत, अंतस आहत,
मन में हाहाकार हुआ।
हाय! पाहुन पाहन से,
उसे क्यों ऐसा प्यार हुआ!
स्वभाव सरिता का बहना है,
उसे नहीं थिर रहना है।
छोड़-छाड़ कर सब अपना,
तट को प्रेयसी संग दहना है।
प्रबल प्रवाह ही सरिता का,
तट को तोड़ा करता है।
तट का स्वभाव है समर्पण,
वह नित सरिता पर मरता है।
किन्तु तट तो तट ही है,
वह निश्चल है निश्छल है!
उसमें तब तक जीवन है,
जब तक सरिता में जल है।
सूख जाने पर भी तटिनी के,
स्थावर है, जड़वत है।
बहने-रहने की वृथा व्यथा,
चिर तटस्थ-सा रहता तट है।
विस्मित एवं विमुग्ध करती हुई उत्कृष्ट कृति । तटस्थ को भी गहराइयों में डूबोती हुई..
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपका!!!
Deleteसरिता का प्रवाह स्वच्छंद
ReplyDeleteसरिता न माने कोई प्रतिबंध
सुन आक्षेप सरिता मुस्काई
कहा, देते हो क्यों प्रेम दुहाई?
हँसना रोना मेरा सर्वस्व रूप
मैं जलधारा हूँ ऋतु अनुरूप
मुझे बंधहीन कहने वाले सुन
तु मुझ संग न कोई सपना बुन
मेरा मुझपर अधिकार नहीं
मैं प्रकृति हूँ,कोई नार नहीं
प्रेम का दंभ भरने वाले तट
प्रेम तुम्हारा अतृप्ति का घट
मैं क्षीण रहूँ निर्भीक बहूँ
समझोगे पीर न,क्या मैं कहूँ
तट औ सरिता की अपनी मर्यादा है
तुलना क्यूँ प्रेम किसमें ज्यादा है?
--///--
आपकी सारगर्भित रचना पर अनेक भाव उत्पन्न हुए,
अनायास लिख गयी मेरी पंक्तियों को सहजता से स्वीकार करें।
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प्रणाम
सादर।
क्या बात है प्रिय श्वेता नहले पर दहला 👌👍
Deleteसरित स्वच्छंद, अ प्रतिबंध,
Deleteकिन्तु तट की मर्यादा है।
अर्द्धनारीश्वर का नर तट है,
शक्ति-सी सरिता मादा है।
मंदाकिनी का उदक उछलकर,
भावोद्वेग में उफनाता है।
तट-से शिव की जटा का घेरा,
उसे बाँध शम लाता है।
न अधिकार, न अतृप्ति,
न सपनों का ताना-बाना है।
तट तटस्थ है, निर्विकल्प है,
अपगा को आना-जाना है।
जी, आपके काव्यात्मक आशीष का अत्यंत आभार।
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Deleteबहुत सुंदर भावप्रधान अभिव्यक्ति प्रिय श्वेता जी 💐🙏
Deleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति आदरणीय कविवर। तट और धारा के शाश्वत सम्बंध पर सशक्त शब्दचित्र। तट के बिना जलधार की कल्पना भी बेमानी है। सुंदर शब्द विन्यास औरअलंकारों से सुसज्जित रचना बहुत मोहक और भावपूर्ण है। लयबद्धत्ता से सृजन की शोभा द्विगुणित हो गई है। सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आपको 🙏🙏
ReplyDeleteरे तट! रख तू मन में धीर ज़रा!
ReplyDeleteसुन!धारा की विवशता है बहना!
सहते-सहते आघात पथ के
उसे तेरे भुजबंध में ही रहना!
वो पंक हो गर ठहरे जो
बने ताल-तलैया या पोखर।
अविरल गति में मगन हो
आह्लादित रहती तुम्हें छूकर!
कब अनुबंध समर्पण में कोई
कहां प्रेम में प्रत्याशा प्रेम होती?
प्रणय-नाद प्रवाह में है,
लहरों में प्रीत छिपी होती!
अटूट नाता तट और जल का
बिन तट के कोई जलधार कहां?
कसे बिन मर्यादा में पगले!
कोई नदिया पाती पार कहां?
🙏🙏
यही समर्पण का सच है,
Deleteकि न अनुबंध, न प्रतिबंध।
श्रद्धा विश्वास हों, तट उसके,
मर्यादा का हो बाहुबन्ध।
जी, आपके काव्यात्मक आशीष का अत्यंत आभार।
Deleteत्रुटि सुधार🙏🙏*कहां प्रेम में प्रत्याशा होती
Deleteबहुत बढ़िया लिखा है रेणु जी,आपकी लेखनी को नमन है 🙏🙏
Deleteबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!!
Deleteरचना की क्या कहूं ? अद्भुत लेखन !!
ReplyDeleteप्रेम,त्याग,संबंध और समर्पण की सुंदर ध्वनितरंग जैसी बहती धारा.. ऊपर से काव्यात्मक प्रतिक्रियाएं, मन तरंगित हो गया,मैं भी कुंडलियां छंद में कुछ पंक्तियां समर्पित कर रही हूं आपकी समृद्ध लेखनी को मन है:....
तट रह रह कटता रहा, सरिता रही निहार ।
हाथ जोड़ती अंबु से, खूब करी मनुहार ।
खूब करी मनुहार, जोड़ कर दोनो विनती ।
मैं सरिता तट बाँह, पकड़कर निर्झर बहती ।।
कह जिज्ञासा आजु, हैं आते तट पर संकट ।
पर है प्रेम अटूट, है तटनी तो ही है तट ।।
जिज्ञासा...
लेखनी को *मन/नमन है🙏
ReplyDeleteकाटे तटिनी, तट कटे, ज्यों निकट दुई होय।
Deleteयही प्रीत गति रीत है, एक दूजे में खोय।।
जी, अत्यंत आभार आपकी मोहक कुंडलियों का🙏
बिलकुल सटीक ,आपको नमन और वंदन 🙏💐
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १४ जनवरी २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी, अत्यंत आभार। मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ!!!
Deleteसुंदर
ReplyDeleteवो पंक हो गर ठहरे जो
बने ताल-तलैया या पोखर।
अविरल गति में मगन हो
आह्लादित रहती तुम्हें छूकर!
आभार..
सादर नमन
जी, अत्यंत आभार। मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ!!!
Deleteविश्व मोहन जी की रचना से ही विस्मित थी । कुछ कमेंट्स देखे तो श्वेता ने अचंभित कर दिया फिर रेणु अपने पूरे लय और ताल के साथ तट और नदी के प्रेम को बतला रहीं रही सही कसर जिज्ञासा जी मे पूरी कर दी ।।एक से बढ़ कर एक रचनाएँ ।
ReplyDeleteकाश कि मनुष्य भी नदी और तट जैसा ही प्रेम कर पाता । नदी जानती है यदि तट नहीं तो उसका अस्तित्त्व नहीं और तट भी यह जानता है कि बिना नदी के उसका अस्तित्त्व ही नहीं ।
आपकी रचना बहुत सुंदर है ।
मकरसंक्रांति की शुभकामनाएँ ।
आपकी सुंदर दृष्टि का दिल से आभार। मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ!
Deleteवह तट से मुँहजोर बोली,
ReplyDeleteतट का दिल वह तोड़ चली।
छोड़ तुम्हें अब जाऊँगी,
नहीं कभी फिर आऊँगी।
बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ
जी, अत्यंत आभार। मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ!
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteमकर-संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं
जी, अत्यंत आभार। मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ!
Deleteबहुत सुंदर शब्दनीधी..एक से बढकर एक टिप्पणियाँ।
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएँ
जी, अत्यंत आभार। मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ!
DeleteA profusion of excellent poetic responses is an indicator of how good , thought provoking ,and relatable your writing is !Adding my two bits.
ReplyDeleteFormless water flows,
Bank holds it,
River!
Vanishes in the vast,
Bank gives way,
Ocean!
The sun blazes,
Bank stares silent,
Vapour!
Heavy clouds pour,
Bank brims with moisture,
Rain!
The Cycle continues…
वाह! बहुत सार्थक काव्यात्मक प्रतिक्रिया। अत्यंत आभार। आपकी लेखनी को समर्पित शब्दांजली:
Deleteबाँहों में तटिनी तट की,
बहे,समर्पित निराकार।
तोड़ के बंधन विलय विराट,
वह फिर बन जाती पारावार।
विरह ज्वाल उत्ताल-सी उर्मि,
घायल-सी घूमती पागल।
भास्वर निदाघ बन भाप-सी बूंदे,
अम्बर बन छाती बादल।
तीरों की यादों के तीर,
बादल को व्योम में भेदे।
पिघले वापस बरखा रानी,
पानी नदिया को दे दे।
यौवन उन्मादी तटिनी फिर,
तट को गले लगाती।
यही सनातन रीत जगत की,
जीवों को समझाती।
आपकी लिखी कोई रचना सोमवार. 17 जनवरी 2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
कोई सी! वाह! रचनाकार की तो हर 'कोई-सी' उसकी आत्मा का अंश होती है। जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteजी, अत्यंत आभार😄🙏🙏
ReplyDeleteआत्मवैरागी तटस्थ-तट की अनुपम प्रणय-गाथा 👌👌👌
ReplyDeleteजी, हार्दिक आभार!!!
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