Thursday, 14 April 2022

सतुआनी


 मीन महल से निकले सूरज,

किया मेष प्रवेश।

आग उगलने लगी किरणें,

हुआ गृष्मोन्मेष!


कतर मिर्च हरी प्याज संग,

सत्तू अमिया की चटनी।

ऊपर रवि आगी में धनके,

नीचे रबी की कटनी।


गंगा जल में डुबकी मारे,

साधक, ज्ञानी, दानी।

खरमास खतम, वैशाखी बिहू,

पुथांडू, सतुआनी।


Sunday, 3 April 2022

कर प्यार गोरिया


सरेह हरिहर बा, देखअ  पतवार गोरिया
पाछे पोखरा में मछरी गुलजार गोरिया।

पावस मनवा ओदाइल, फुहार गोरिया।
कर ल अँखियाँ हमरा संग, तू चार गोरिया।

देखअ  खेतवा में बदरा बा ठार गोरिया।
मनवा मारे इ गजबे के धार गोरिया।

छोड़अ  नखड़ा, ना रुसअ, न रार गोरिया।
हम गइनी  इ हियवा अब हार गोरिया।

देखअ  मिलिंदवा के मिलल, मकरंद गोरिया।
आव बहिंयाँ, तू अँखियाँ कर ल बंद गोरिया।

ई बा माटी के देहिया, निस्सार गोरिया।
चरदिनवा के चाँदनी,  कर  ल प्यार गोरिया।


शब्दार्थ :
सरेह - गाँव के बाहर खेत-पथार  वाली खुली जगह 
पतवार - पत्ते । पाछे - पीछे । पावस - बरसात। ओदाइल - भीगा हुआ।
बदरा - बादल। ठार - खड़ा ।रूसना  - रूठना । रार -तकरार । हियवा- दिल।
मिलिंद -भौंरा । मकरंद - पराग।देहिया - देह। चरदिनवा के चाँदनी - चार दिन की चाँदनी।