Thursday, 14 April 2022

सतुआनी


 मीन महल से निकले सूरज,

किया मेष प्रवेश।

आग उगलने लगी किरणें,

हुआ गृष्मोन्मेष!


कतर मिर्च हरी प्याज संग,

सत्तू अमिया की चटनी।

ऊपर रवि आगी में धनके,

नीचे रबी की कटनी।


गंगा जल में डुबकी मारे,

साधक, ज्ञानी, दानी।

खरमास खतम, वैशाखी बिहू,

पुथांडू, सतुआनी।


21 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ अप्रैल २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१५-०४ -२०२२ ) को
    'तुम्हें छू कर, गीतों का अंकुर फिर उगाना है'(चर्चा अंक -४४०१)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
  3. गांव की याद आ गई, हमेशा की तरह लाजबाव, सादर नमस्कार 🙏

    ReplyDelete
  4. वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब अप्रतिम सृजन
    ज्योतिषी से लेकर जमीन से जुड़ी किसानी हो या धर्म से जुड़े कर्मकाण्ड... परम्परागत झलक समेटे...
    सराहना से परे बहुत ही लाजवाब।

    ReplyDelete
  5. संस्कार और संस्कृति को समेटे भावपूर्ण अभिव्यक्ति आदरनीय विश्वमोहन जी।एक ही पर्व के अलग-अलग स्थानो पर नाम भले भिन्न हो पर इनमें निहित लोक संस्कार एक ही है।हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई स्वीकार करें 🙏🙏

    ReplyDelete
  6. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, भारत में मूलत: सारे त्योहारों का संबंध फसल और कृषि से ही है।

      Delete
  7. बहुत सुन्दर सृजन

    ReplyDelete
  8. फिर जिंदा हो गया गांव
    बहुत सुंदर रचना

    ReplyDelete
  9. इस पर्व के विषय में नहीं पता था । आभार इस जानकारी के लिए ।
    पर्व की शुभकामनाएँ

    ReplyDelete
  10. अभी अभी गूगलेश्वर महाराज से पुथांडु और सतुआन का अर्थ पूछकर आ रही हूँ। नए नए शब्द और नई जानकारी देने के लिए सादर आभार । बैसाखी, बिहू तो पता ही थे। अमिया की चटनी अनजाने में ही बन गई थी मुझसे सतुआन के दिन।

    ReplyDelete
  11. बहुत बहुत सुन्दर |

    ReplyDelete
  12. बहुत ही सार्थक सृजन ।
    मैने बचपन में तो देखा ही है, मेरे यहां इस बार कई लोगों ने ये त्योहार मनाया और कुछ ऐसे ही फोटो डालकर लालच दिलवाया।

    ReplyDelete