पाछे पोखरा में मछरी गुलजार गोरिया।
पावस मनवा ओदाइल, फुहार गोरिया।
कर ल अँखियाँ हमरा संग, तू चार गोरिया।
देखअ खेतवा में बदरा बा ठार गोरिया।
मनवा मारे इ गजबे के धार गोरिया।
छोड़अ नखड़ा, ना रुसअ, न रार गोरिया।
हम गइनी इ हियवा अब हार गोरिया।
देखअ मिलिंदवा के मिलल, मकरंद गोरिया।
आव बहिंयाँ, तू अँखियाँ कर ल बंद गोरिया।
ई बा माटी के देहिया, निस्सार गोरिया।
चरदिनवा के चाँदनी, कर ल प्यार गोरिया।
शब्दार्थ :
सरेह - गाँव के बाहर खेत-पथार वाली खुली जगह
पतवार - पत्ते । पाछे - पीछे । पावस - बरसात। ओदाइल - भीगा हुआ।
बदरा - बादल। ठार - खड़ा ।रूसना - रूठना । रार -तकरार । हियवा- दिल।
मिलिंद -भौंरा । मकरंद - पराग।देहिया - देह। चरदिनवा के चाँदनी - चार दिन की चाँदनी।
वाह
ReplyDeleteजी,अत्यंत आभार।
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार 04 अप्रैल 2022 ) को 'यही कमीं रही मुझ में' (चर्चा अंक 4390 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
जी, अत्यंत आभार।
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 04 अप्रैल 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
जी, अत्यंत आभार।
Deleteअभिराम चित्र युक्त लोक रंग से सराबोर सुन्दर और भावपूर्ण प्रीत राग मन को छू गया आदरणीय विश्वमोहन जी।सरल और सहज अभिव्यक्ति में में प्रेम की मधुर मनुहार है।बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं इस प्रेम गीत के लिए।आप दोनों का साथ और प्यार अटल रहे यही दुआ है 🙏🙏
ReplyDelete----*----*---
तू ही पिया का जीवन आधार गोरिया!
सुन!सजन की मीठी मनुहार गोरिया !
लगे नयन तुम्हारी ही ओर गोरिया ,
तू है चंदा सजन है चकोर गोरिया,
जहाज के पंछी-सा मुड़-मुड़ आवे
कहाँ दिल को और कोई ठौर गोरिया!
है तुझी पे सब अधिकार गोरिया
जीवन नैया की तू पतवार गोरिया!!
🙏🙏
इस अद्भुत काव्यात्मक टिप्पणी का आभार!!!
Deleteदेख खेतवा में बदरा बा ठार गोरिया।
ReplyDeleteअप्रतिम..
सादर..
जी, अत्यंत आभार!
Deleteआँखें चार करने की अभी भी ख्वाहिश हो तो समझो प्रेम ज़िन्दा है ।
ReplyDeleteग्रामीण अञ्चल का स्वाद आ गया । चित्र बहुत सुंदर है ।।
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteबहुत बहुत सुन्दर मधुर रचना
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!
Deleteई बा माटी के देहिया निस्सार गोरिया।
ReplyDeleteचरदिनवा के चांदनी कर ल प्यार गोरिया।
सच चार दिन की चांदनी है तो प्यार से दूर क्यों रहे
बहुत सुन्दर
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteशब्द शब्द उलीचे माधुर्य रस के धार गोरिया
ReplyDeleteनेह,गठबंधन में मन मगन बाटे सरोबार गोरिया..
सुंदर छवि संग अप्रतिम रचना।
बधाई
जी,अत्यंत आभार आपकी काव्यात्मक टिप्पणी का।
Deleteवाह!लाज़वाब 👌
ReplyDeleteहर बंद गज़ब।
सादर
सुंदर श्रृंगार गीत।
ReplyDeleteकेतना सुंदर बा ताल कछार गोरिया ।
ReplyDeleteदेखा होत धरा क सिंगार गोरिया।।
ओढ़े धानी चुनर लगे दुल्हन सजी,
अउर पुरवा के चल ली बयार गोरिया ।।
तनी रुकि के चला मोरी बारी धना,
एक फोटू क बा मनुहार गोरिया ।।
बहुत सुंदर दृश्य, उच्चकोटि का मनभावन लोकगीत ।
आप दोनों को हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐
वाह!अत्यंत सुहावन और मनभावन काव्यात्मक टिप्पणी का हार्दिक आभार!!!
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!!
Deleteबहुत ही मनोरम दृश्य एवं खूबसूरत तस्वीर संग गोरिया संग सम्बोधन में लाजवाब गीत...
ReplyDeleteवाह!!!!
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteवाह ! मूड और मौसम दोनों छ्लक पड़े !!!
ReplyDeleteमुझे कुछ शब्दों का अर्थ समझ नहीं आया, पर overall रचना समझ आ गई।
बहुत आभार आपका, लेकिन मूड और मौसम के बीच बाधा बन के आने वाले शब्दों की सूची दें।
DeleteNice Sir .... Very Good Content . Thanks For Share It .
ReplyDelete( Facebook पर एक लड़के को लड़की के साथ हुवा प्यार )
( मेरे दिल में वो बेचैनी क्या है )
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जी, अत्यंत आभार!!!
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