खुद कपटी थे, क्या समझो तुम!
निश्छलता क्या होती है।
तेरी हर खुदगर्जी पर,
बस टीस-सी दिल में होती है।
मेरी तो हर बात में तुमको,
केवल व्यंग्य झलकता है।
जबकि हर हर्फ वह तेरा,
मुझको पल-पल छलता है।
बात बात तेरी घुड़की कि,
मुझे छोड़ तुम जाओगे।
मेरी यादों की गलियों में,
नहीं कभी तुम आओगे।
तुम भी सुन लो, नहीं मिटेगी,
गलियों की पद जोड़ी रेखा।
मेरा रंग तो सदा एक-सा,
रंगहीन नेह तेरा देखा।
हम कहते, छोड़ो हठात हठ,
और दंभ का दामन अपना!
अहंकार को आहूत कर दो,
हसरतों का बुनों सपना।
हुई दग्ध तुम, दर्प निदाघ में
और न दहको, दंभ दामिनी।
देखो, दूधिया दमके चांदनी
राग यमन में झूमे यामिनी।