Saturday 8 October 2022

पगले बादल!

हाँ, हाँ, गरजो,

बादल, गरजो!

बरस भी रहे हो,

अब तो! 

मूसलाधार! 

और असमय भी! 

बेमौसम ।

हो गयी है  अब तो,

धरती भी,

शर्म से पानी-पानी।



'गरजना' तुम्हारी भावनाएँ हैं ।

और फ़ितरत है, तुम्हारी।

'बरसना', 

उन भावनाओं में।

कहना क्या  चाह रहे हो? 

कोई अवस्था नहीं होती 

भावोद्वेग की! 

कोई उम्र नहीं होती,

वश में करने और 

बहने बहकने की! 



तो जान लो!

एक भाव होता है,

हर 'अवस्था' का भी।

और एक पड़ाव,

हर 'भाव' का भी!

पहले पैदा करो

मन में अपने,

भावना, नियंत्रण की! 

पाओगे नियंत्रण तब,

अपनी भावनाओं पर!



नहीं बरसोगे, 

फिर  बेमौसम, ग़ैर उम्र।

ना ही तड़पोगे तब,

और ना ही गरजोगे।

पहले बीज तो डालो, 

करने को क़ाबू में,  ख़ुद को।

नहीं होता नाश कभी, 

कर्म के बीज का!

यही तो योग है।

पगले बादल!


28 comments:

  1. गर्जना तुम्हारी फितरत है और बरसना तुम्हारी भावना .... कर्म के बीज तो डालने ही होंगे ..... कमाल की अभिव्यक्ति ।

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  2. बहुत बढ़िया आदरनीय कविवर!! बरसाती बादल की स्वछन्द गतिविधियों पर सूक्ष्म दृष्टिपात!!पर इस आचारसंहिता विहीन,उदंड और मनमौजी मेघ को क्या कोई नैतिकता का पाठ पढ़ा पाया है!इसके आवारगी भरे विचरण से कोई उजडे या फिर मिट जाए इसे क्या फिक्र?सादर 🙏

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  3. आपकी लिखी रचना सोमवार 10, अक्टूबर 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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  4. बहुत सुंदर रचना

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  5. असमय, कभी भी भी कुछ भी, मनमौजी होते, आज के समय,समाज, को देख, लग रहा बदल भी अपनी जिद पर अड़ गया है जैसे कह रहा हो.. मेरी मर्जी.. जब चाहे बरसूं, जब चाहे गरजूं, मेरी मर्जी।
    सुंदर शब्द शौष्ठव से सज्जित सार्थक और सामयिक रचना ।

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  6. बहुत सुन्दर- उषा किरण

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  7. पहले पैदा करो

    मन में अपने,

    भावना, नियंत्रण की!

    पाओगे नियंत्रण तब,

    अपनी भावनाओं पर!
    ये तो इसकी अवस्था और पड़ाव के हद से बाहर की भावाभिव्यक्ति है आजकल...जैसे अभिव्यक्ति की आजादी इसे भी चाहिए ...
    बहुत ही लाजवाब सामयिक सृजन।

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    1. सही कहा। जी, बहुत आभार।

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  8. बेजोड़, अद्भुत।
    गूढ़ अर्थ समेटे सराहनीय अभिव्यक्ति।
    प्रणाम
    सादर।

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  9. बहुत खूब 👌👌

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