मेरी खरी और तेरी खोटी,
इसमें जीवन बीता।
इसी उलझन में फंसे रहे,
कौन हारा, कौन जीता।
छोड़ो बक- बक,
हो जा चुप अब।
बोलोगे तो,
सोचोगे कब।
नहीं रहेगा,सुननेवाला,
महफिल ये छोड़ेंगे सब।
आगे नाथ न पीछे पगहा,
तो तू क्या करेगा तब?
आँखों में न साजो सपने,
न हसरत हो सीने में।
जो सुख अंजुरी भर पानी में
नहीं मदिरा पीने में।
नहीं रहेगा मेला हरदम,
न ये खुशबू भीनी।
' आए अकेले, जाओ अकेले '
भ्रम भेक भूअंकिनी।
जो मुक्ति अंतस के घट में,
नहीं काशी मदीने में।
दुनिया जितनी छोटी हो,
उतनी अच्छी जीने में।