Tuesday, 12 September 2023

छोड़ो बक- बक

 मेरी खरी और तेरी खोटी,

इसमें जीवन बीता।

इसी उलझन में फंसे रहे,

कौन हारा, कौन जीता।


छोड़ो बक- बक,

हो जा चुप अब।

बोलोगे तो,

सोचोगे कब।


नहीं रहेगा,सुननेवाला,

महफिल ये छोड़ेंगे सब।

आगे नाथ न पीछे पगहा,

तो तू क्या करेगा तब?


आँखों में न साजो सपने,

न हसरत हो सीने में।

जो सुख अंजुरी भर पानी में

नहीं मदिरा पीने में।


नहीं रहेगा मेला हरदम,

न ये खुशबू भीनी।

' आए अकेले, जाओ अकेले '

भ्रम भेक भूअंकिनी।


जो मुक्ति अंतस के घट में,

नहीं काशी मदीने में।

दुनिया जितनी छोटी हो,

उतनी अच्छी जीने में।

16 comments:

  1. जीवन में मुक्ति का अहसास दिलाने वाले सुंदर सूत्र

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  2. नहीं रहेगा,सुननेवाला,

    महफिल ये छोड़ेंगे सब।

    आगे नाथ न पीछे पगहा,

    तो तू क्या करेगा तब?
    बहुत सटीक एवं चिंतनपरक
    दुनिया जितनी छोटी हो,
    उतनी अच्छी जीने में।
    अद्भुत सत्य...
    वाह!!!
    लाजवाब।

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  3. जो मुक्ति अंतस के घट में,

    नहीं काशी मदीने में।

    दुनिया जितनी छोटी हो,

    उतनी अच्छी जीने में। बहुत सुंदर रचना ,काश ऐसा होता बहुत आदरणीय शुभकामनाएँ

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  4. लाजवाब कहूं या बिंदास कहूं आपकी रचना का क्या अंदाज कहूं।

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    1. जी, अत्यंत आभार, विष्णु कांत मिश्र जी!🙏🙏

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  5. सुंदर और सरल भावों से सजी रचना आदरणीय विश्वमोहन जी | जीवन को सादगी और निश्चलता से जीने में जीवन की सार्थकता है | पर हम लोग व्यर्थ के चिंतन और वाद -विवाद में गँवा देते हैं | हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई |

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  6. मुक्त होने का एहसास यही है ... पर ये मुक्ति ही क्यों ... प्रेम में सब चलता है ...

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