मेरी खरी और तेरी खोटी,
इसमें जीवन बीता।
इसी उलझन में फंसे रहे,
कौन हारा, कौन जीता।
छोड़ो बक- बक,
हो जा चुप अब।
बोलोगे तो,
सोचोगे कब।
नहीं रहेगा,सुननेवाला,
महफिल ये छोड़ेंगे सब।
आगे नाथ न पीछे पगहा,
तो तू क्या करेगा तब?
आँखों में न साजो सपने,
न हसरत हो सीने में।
जो सुख अंजुरी भर पानी में
नहीं मदिरा पीने में।
नहीं रहेगा मेला हरदम,
न ये खुशबू भीनी।
' आए अकेले, जाओ अकेले '
भ्रम भेक भूअंकिनी।
जो मुक्ति अंतस के घट में,
नहीं काशी मदीने में।
दुनिया जितनी छोटी हो,
उतनी अच्छी जीने में।
जीवन में मुक्ति का अहसास दिलाने वाले सुंदर सूत्र
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteलाजवाब :)
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteबेहतरीन।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteनहीं रहेगा,सुननेवाला,
ReplyDeleteमहफिल ये छोड़ेंगे सब।
आगे नाथ न पीछे पगहा,
तो तू क्या करेगा तब?
बहुत सटीक एवं चिंतनपरक
दुनिया जितनी छोटी हो,
उतनी अच्छी जीने में।
अद्भुत सत्य...
वाह!!!
लाजवाब।
बहुत आभार।
Deleteजो मुक्ति अंतस के घट में,
ReplyDeleteनहीं काशी मदीने में।
दुनिया जितनी छोटी हो,
उतनी अच्छी जीने में। बहुत सुंदर रचना ,काश ऐसा होता बहुत आदरणीय शुभकामनाएँ
जी, बहुत आभार।
Deleteलाजवाब कहूं या बिंदास कहूं आपकी रचना का क्या अंदाज कहूं।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार, विष्णु कांत मिश्र जी!🙏🙏
Deleteसुंदर और सरल भावों से सजी रचना आदरणीय विश्वमोहन जी | जीवन को सादगी और निश्चलता से जीने में जीवन की सार्थकता है | पर हम लोग व्यर्थ के चिंतन और वाद -विवाद में गँवा देते हैं | हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई |
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteमुक्त होने का एहसास यही है ... पर ये मुक्ति ही क्यों ... प्रेम में सब चलता है ...
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
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