मृण्मयी भू, आज अजर-अजिर!
चिन्मय चेतन घर आया है।
क्षिति जल पावक गगन समीर संग,
पुरुष तत्व भर आया है।
पुलकित तरु के पात-पात पर,
चिड़ियाँ चंचल चहक रही हैं।
पवन मचाए उधम दम भर,
कुंज लताएँ बहक रही हैं।
संग अनंग वसंत मधुरास रत,
आरक्त कानन का आनन है।
उलझी बेल द्रुम प्रेम खेल में,
ऋतु हाला में अवगाहन है।
शुक, सारिका, हारिल, श्यामा,
रति - राग और प्रीत की बात।
उपवन सघन सरस मद छात,
पात पात पर पखेरू गात।